Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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२०
दिसम्बर - २०१३ [३] दान आपावमा अरुची दाखववी. [४] दान लेनारने अप्रिय-वचन कहेवू. [५] दान आप्या पछी पश्चाताप करवो - ए पांच दानना दूषण छे.
[६] सुपात्रदानमहत्ता
महत्ता घणुं करीने परिणामने आश्रयीने जणाय छे. अहीं आपेला दानना परिणाम माटे कहे छ के -
व्याजे स्याद् द्विगुणं वित्तं, व्यवसाये चतुर्गुणम्। क्षेत्रे शतगुणं प्रोक्तं, पात्रेऽनन्तगुणं पुनः ।।४।।
[उपदेशतरङ्गिणी १/४०] अर्थ - धनने जो व्याजे फेरववामां आवे तो बमणुं थइ पार्छ मळे छे. ए ज धन जो धंधामां वपराय तो चार गणुं थइ जाय छे. ए ज धन क्षेत्रे [खेतर]मां [अनाज वाववामा] वपराय तो सो गj थाय छे. अने ए ज धन जो सुपात्र-पात्र व्यक्तिने आपवामां आवे अथवा सुपात्र व्यक्तिनी पाछळ वापरवामां आवे तो ते अनंतगुण थाय छे.
पात्रक्षेत्रमिदं जीया-च्चिरं यत्राऽर्थशालयः। धीमद्भिः सकृदप्युप्ताः, संलूयन्ते सहस्रशः ।।
उपदेशतरङ्गिणी १/४४] पात्रव्यक्तिरूपी ए क्षेत्र जय पामो. बुद्धिमान पुरुषो जे क्षेत्रमा अर्थ रूपी डांगरनुं एक ज वार वावेतर करे छे पण तेने अनेकवार लणे छे अर्थात् अनेकगणुं फळ मेळवे छे.
उपरना बंने श्लोकना भावने कवि सोदाहरण रजु करता कहे छ के - आने निम्बे सुतीर्थे कचवरनिचये, शुक्तिमध्येऽहिवक्त्रे, औषध्यादौ विषद्री गुरुसरसि गिरौ पाण्डुभू-कृष्णभूम्योः । इक्षुक्षेत्रे कषायद्रुमवनगहने मेघमुक्तं यथाऽम्भस्तद्वत् पात्रे कुपात्रे नयजनिजधनं दत्तमायाति पाकम् ।।
. [उपदेशतरङ्गिणी १/४४] एक ज पाणिनुं टीपुं जेम जुदा-जुदा स्थळे जुदा-जुदा फळने आपे छे तेम 'दान' पात्र विशेषथी विशेष फळ आपनारूं बने छे.
अहीं त्रण प्रकारना दान लेनारमा उत्तमपात्र साधु कहेवाय छे माटे एमने
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