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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० दिसम्बर - २०१३ [३] दान आपावमा अरुची दाखववी. [४] दान लेनारने अप्रिय-वचन कहेवू. [५] दान आप्या पछी पश्चाताप करवो - ए पांच दानना दूषण छे. [६] सुपात्रदानमहत्ता महत्ता घणुं करीने परिणामने आश्रयीने जणाय छे. अहीं आपेला दानना परिणाम माटे कहे छ के - व्याजे स्याद् द्विगुणं वित्तं, व्यवसाये चतुर्गुणम्। क्षेत्रे शतगुणं प्रोक्तं, पात्रेऽनन्तगुणं पुनः ।।४।। [उपदेशतरङ्गिणी १/४०] अर्थ - धनने जो व्याजे फेरववामां आवे तो बमणुं थइ पार्छ मळे छे. ए ज धन जो धंधामां वपराय तो चार गणुं थइ जाय छे. ए ज धन क्षेत्रे [खेतर]मां [अनाज वाववामा] वपराय तो सो गj थाय छे. अने ए ज धन जो सुपात्र-पात्र व्यक्तिने आपवामां आवे अथवा सुपात्र व्यक्तिनी पाछळ वापरवामां आवे तो ते अनंतगुण थाय छे. पात्रक्षेत्रमिदं जीया-च्चिरं यत्राऽर्थशालयः। धीमद्भिः सकृदप्युप्ताः, संलूयन्ते सहस्रशः ।। उपदेशतरङ्गिणी १/४४] पात्रव्यक्तिरूपी ए क्षेत्र जय पामो. बुद्धिमान पुरुषो जे क्षेत्रमा अर्थ रूपी डांगरनुं एक ज वार वावेतर करे छे पण तेने अनेकवार लणे छे अर्थात् अनेकगणुं फळ मेळवे छे. उपरना बंने श्लोकना भावने कवि सोदाहरण रजु करता कहे छ के - आने निम्बे सुतीर्थे कचवरनिचये, शुक्तिमध्येऽहिवक्त्रे, औषध्यादौ विषद्री गुरुसरसि गिरौ पाण्डुभू-कृष्णभूम्योः । इक्षुक्षेत्रे कषायद्रुमवनगहने मेघमुक्तं यथाऽम्भस्तद्वत् पात्रे कुपात्रे नयजनिजधनं दत्तमायाति पाकम् ।। . [उपदेशतरङ्गिणी १/४४] एक ज पाणिनुं टीपुं जेम जुदा-जुदा स्थळे जुदा-जुदा फळने आपे छे तेम 'दान' पात्र विशेषथी विशेष फळ आपनारूं बने छे. अहीं त्रण प्रकारना दान लेनारमा उत्तमपात्र साधु कहेवाय छे माटे एमने For Private and Personal Use Only
SR No.525285
Book TitleShrutsagar Ank 2013 12 035
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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