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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ श्रुतसागर - ३५ दान आप, ए वधु महत्त्व धरावे छे. [७] दानविषयक साहित्य - 'दान' साहित्यने अनुलक्षीने अनेक कर्ताओ द्वारा घणुं साहित्य रचायुं छे. आपणे आगळना अंकमां जोइशुं. [८] सुपात्रदान कथाओ - जैन कथा साहित्यमा 'सुपात्रदान' विषयनी घणी कथाओ छे. प्रस्तुत कृतिकारे एमांनी केटलीक कथाओनो संग्रह - १ पद्यमां कर्यो छे - जे नीचे मुजब छे. श्री नाभेयजिनेश्वरो धनभवे श्रेयः श्रियामाश्रयः, श्रेयांसः स च मूलदेवनृपतिः श्रीचन्दनानन्दना । धन्योऽयं कृतपुण्यकः शुभमनाः श्रीशालिभद्रादयः, सर्वेऽप्युत्तमदानदानविधिना जाता जगद्विश्रुताः ।। उपदेशतरङ्गिणी १/६१ आ सिवाय जीरणशेठ, पूरणशेठ, रेवती श्राविका, जेवा अन्य दृष्टांतो पण प्रख्यात छे. [९] मेघवाहन नृपकथा - जेम 'श्रीपाळ कथा' नवपदजीना महात्म्यने जणावनारी छे तेम प्रस्तुत कथा दानना महात्म्यने जणावनारी छे. दानना इहलोक अने परलोक ए बे फळ पैकी प्रस्तुत कथामां दान- इहलौकिक फळ विस्तृत रूपे अने परलौकिक फळ आंशिक रूपे ज जणावायुं छे. ढूंकमां नायकनु परदेशभ्रमण : अनेक राज्यप्राप्ति अने अनेक पत्नी वरण ए कथानो मुख्य विषय छे. संस्कृत भाषामां निबद्ध प्रस्तुत कृतिमां क्यारेक प्राकृत के मारूगुर्जर भाषाना काव्यो [श्लोको] प्रयोजाया छे. आ काव्यो कथा प्रवाहमां आडखीली न बनता तेने वधु रोचक बनावे छे. क्यारेक तो संस्कृत गद्य खंडमां पण गुर्जर भाषा देखा दे छे. ___'उपदेशतरङ्गिणी' ग्रंथना 'दानोपदेश' अधिकारमा आ कथानो निर्देश मात्र छे. अन्य कोई स्थाने आ कथा प्राप्त थई नथी. बीजं प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रतनुं ७ नंबरनुं पत्र पण प्राप्त थयु नथी एमां पार्छ प्रतनी नकल [प्रथमादर्श उपरथी के अन्य प्रत उपरथी करनारे पण घणा लेखन दोषो कर्या छ तेथी कथा त्रूटक रहे छे. ___ग्रंथ वांचनारे के लेखके ग्रंथमां केटलाक ठेकाणे शब्द उपर ज नोंध करी छे. पण ते खूब नाना अक्षर होय स्पष्ट वंचाती नथी. तेथी अमे ते बधी आपी शक्या नथी. For Private and Personal Use Only
SR No.525285
Book TitleShrutsagar Ank 2013 12 035
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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