Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ श्रुतसागर - ३५ कीर्त्तिनुं गान करनारा [स्तुति करनारा] भाट-चारण मल्ल-गंधर्व-याचक वगेरेने जे दान अपाय ते कीर्तिदान. [उपदेशतरङ्गिणी - पृष्ठ-१४-२०-३४-४०-४७, प्रकाशक-हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाळा] [१] सात्त्विकदान - उपकारी न होय एवा व्यक्तिने पण दाननी बुद्धिथी जे दान अपाय ते सात्त्विकदान. [२] राजसदान - प्रत्युपकारनी बुद्धिथी के फळनी इच्छाथी जे दान अपाय ते राजसदान. [३] तामसदान • क्रोधथी, बळवानना आग्रहथी मननी इच्छा विना जे दान अपाय ते तामसदान. __ [उपदेशतरङ्गिणी पृष्ठ २९ प्रकाशक-हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाळा] (१) दानद्रव्य, (२) दान लेनार व्यक्ति, (३) दान आपनारना भाव' ए त्रण दानना भेदनो विचार अमे अमारी रीते कर्यो छे. कदाच तेमां भूल होई शके. आ प्रस्तावनानुं कार्य करता अमने श्री पौरिकभाई पंडितजीनो 'प्राकृत साहित्यमां दानकथाओ - एक अभ्यास' नामनो महानिबंध मळ्यो, आ विषे वधु वाचवां इच्छनारे एमनो ए निबंध वाचवो जोईए. [५] दानभूषण-दानदूषण - आ ज 'उपदेशतरंगिणी' ग्रंथमां दानना पांच भूषण अने पांच दूषण जणाव्या छे. जे नीचे मुजब छ মুষ आनन्दाश्रूणि-रोमाञ्चो बहुमानं प्रियं वचः । तथाऽनुमोदना पात्रे, दानभूषणपञ्चकम् ।। दान आपता समये [१] हर्षना आंसु आववा [२] पात्रव्यक्तिने जोईने थतो रोमांच [३] पात्र प्रति बहुमान [४] ते व्यक्ति साथै प्रियवचनोथी वातचीत [प्रेमाळ वचनोथी आवकार) [५] पात्र व्यक्तिनी अनुमोदना करवी - ए पांच दानना आभूषण छे. दूषण अनादरो विलम्बश्च, वैमुख्यं विप्रियं वचः। पश्चाततापश्च दातुः, दानदूषणपञ्चकम् || [१] दान आपवाना समये अनादर करवो [२] दान आपवामां विलंब करवो. For Private and Personal Use Only

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