Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ श्रुतसागर - ३५ क्यारेक तो आ आंतरकथाओ पण अवांतरकथाथी वधु रसाळ-समृद्ध बनती होय आंतर कथा माटे श्रीयुत हरिवल्लभ भायाणी 'लोककथानां मूळ अने कूळ' पुस्तकमां जणावे छ के -'कथामां कथा गूंथवानी जात-जातनी युक्तिओ भारतीय कथा साहित्यमा योजाई छे. मुख्यपात्रनी भ्रमणकथा के अनेक पत्नीओनी प्राप्तिकथा बृहत्कथा, वसुदेवहिंडी], अनेक भवनी कथा [जातककथा, कादंबरी, समरादित्यकथा, पृथ्वीचंद्र चरित्र, सदेवंत सावलिंगा] अनेक प्रसंगोने लगती आडकथाओ [पंचतंत्र), अनेक पात्रोनी वीतककथा [अवंतिसुंदरी कथा] मुख्य पात्रनी पराक्रमकथा के परोपकारकथा [विक्रमकथा, अंबडचरित्र , अमुक विषयगुच्छनी सार्थ संकळायेली कथाओ [कुवलयमाला, उपदेशमाळा, शीलोपदेशमाळा, भरडकबत्रीशी वगेरे वगेरे.. XXX' ‘ए ज रीते अमुक घटना बनती रोकवा युक्ति रूपे कहेवाती कथाश्रेणी शुकसप्तति पण आ अवांतरकथाना संग्रह रूपे ज छे. जैनकथा ग्रंथो - दृष्टिपात : जैनोनु सिद्धांत साहित्य एटले आगमसाहित्य. ए ४ भागमा विभक्त छे. १. द्रव्यानुयोग २. गणितानुयोग ३. चरणकरणानुयोग ४. धर्मकथानुयोग. ते-ते अनुयोगना ग्रंथोमां ते ते अनुयोग मुख्यपणे होय छे. जेमके 'आचारांग सूत्र'मां चरणकरणानुयोग मुख्य छ 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति वगेरे ग्रंथोमां गणितानुयोग प्रधान छे. 'सूत्रकृतांग, समवायांगसूत्र' वगेरे ग्रंथोमां द्रव्यानुयोग प्रधान छे. ते ज रीते 'ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र', 'राजप्रश्नीयसूत्र', 'उपासकदशांगसूत्र', 'अन्तःकृदशांगसूत्र' वगेरे आगमोमां धर्मकथानुयोग व्यापकपणे समायेलो छे. 'ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र'मां तो एक समये ३।। करोड' वार्ताओ हती, एम कहेवाय छे. धर्मकथानुयोगनो आ सौथी विशाळ संग्रह हशे. आम आगम ग्रंथोमां पण स्वतंत्रपणे कथाओनुं अस्तित्व हतुं. समयांतरे ते आगमो उपर गीतार्थ आचार्यादि गुरुभगवंतो द्वारा नियुक्ति-भाष्य-चूर्णि-टीकाबालावबोध वगेरे ग्रंथोनी रचना थई. आवा विवरण ग्रंथोमा मूळ आगमनी कथाओ थोडी के वधु विस्तृत तो थइ साथे क्यांक अन्य पूरक दृष्टांतोथी समृद्ध पण थइ. 'उत्तराध्ययन सूत्र' 'आवश्यकसूत्र-टीका' वगेरे टीका ग्रंथो तेथी ज विशद बन्या, अने वधु लोकभोग्य पण बन्या. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84