Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

Previous | Next

Page 21
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक प्रदान कर मुनि अमृतसागरजी नामकरण किया. वह दिन नवदीक्षित मुनि के जीवन में ऐतिहासिक परिवर्तन का दिन था. लगा जैसे उत्तम बीज को किसी ने मरुभूमि से लाकर उर्वर भूमि में रख दिया हो, पूज्य गुरुदेव का सान्निध्य पाते ही नूतन मुनि की आध्यात्मिक भावना ने अपना रंग दिखाना प्रारम्भ कर दिया. विद्याभ्यास, संयम एवं तप-जप की ऐसी साधना आरम्भ हुई कि क्रमशः गणि व पंन्यास पद प्राप्त कर प्रभु महावीर की पाट परम्परा में शासन धुरा वहन करने वाले आचार्य पद की योग्यता को उजागर कर दिया. सदा आनंदमय सौम्यता का गुण आपने आभूषण की तरह संचित किया है. आपके दिव्य, तेजस्वी, यशस्वी चेहरे पर सौम्यता हर क्षण लहराती रहती है. संयम उसी में स्थिर रहता है जो सरल स्वभावी होता है, उनके तप-जपमय चारित्र के प्रभाव से एक सौम्य आभा उनके चारों ओर बनी रहती है. इसी कारण पूज्य पंन्यासजी के परिचय में आने वाला व्यक्ति भी आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता. सहजता-सरलता ही चारित्रवान व्यक्तित्व का गुण है. उदारता आपके जीवन का सर्वविदित गुण है. संयमी को सहयोगी बनने के भाव आपके हृदय में कूट-कूट कर भरे हुए हैं. निखालसता, करुणा और वात्सल्य के कारण आप श्रमण समुदाय में सबके प्रिय व श्रद्धेय बने हुए हैं. आप में करुणा इतनी है कि आपको परदुःख में स्वयं को दुःखी अनुभव करते देखा गया हैं. समस्त श्रमणों के साथ विशिष्ट मैत्रीपूर्ण व्यवहार करते हुए आप संयम में सदा प्रफुल्लित रहते हैं. कुशल जीवन शिल्पी पंन्यास श्री अमृतसागरजी ने अपने वात्सल्य तथा कृपापूर्ण भावों से कई मानवों को सन्मार्ग की ओर प्रवृत करने में सफलता प्राप्त की है. कई परिवारों को धर्म पथ पर लाकर समाज कल्याण का कार्य किया है. आप ऐसे परोपकारी कार्यों से आनन्द का अनुभव करते हैं. जिनशासन को समर्पित जीवन वैभव के धनी पूज्य पंन्यास प्रवर श्री अमृतसागरजी नूतन दीक्षित मुनियों को पंचाचार पालन और व्यावहारिक जीवन के आवश्यक पहलुओं के लिये मार्गदर्शन करते हुए उल्लासपूर्वक संयमित जीवन जीने की कला सिंचित करते रहते हैं. सदा प्रसन्न आत्मीय मृदु व्यवहार, सरल हृदय, सादगीपूर्ण जीवन और मधुरवाणी आपके संत हृदय व्यक्तित्व के परिचायक है. आपकी प्रेरणा से कई मुमुक्षुओं ने संयम मार्ग में स्थिरता प्राप्त की है. अध्ययनशील पूज्यश्री मूलतः गुजराती होते हुए भी उत्तर व दक्षिण भारत के कई भाषाओं का ज्ञान रखते है. आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी तथा गुजराती भाषा के ज्ञाता हैं. प्रभु भक्ति के परम अनुरागी पूज्य पंन्यासश्री का अधिकतम समय आभ्यन्तरतप और जप में व्यतीत होता है. आपकी संयमयात्रा से प्रसन्न पू. आचार्य श्री ने वसंतपंचमी माघ शुक्ला पंचमी वि. सं. २०४९ दिनांक २८ फरवरी, १९९३ को अहमदाबाद में गणिपद से विभूषित किया. पूज्यश्री की देव-गुरु तथा धर्म के प्रति प्रगाढ निष्ठा इसी से प्रगट होती है कि आप स्वयं बड़ी मात्रा में महामंत्र नवकार का जाप करते रहते हैं तथा परिचय में आने वाले व्यक्तियों व अनुयायियों को भी नवकार महामंत्र को आत्मसात करने की प्रेरणा देते हैं. नवकार मंत्र की आराधना करने एवं इसी में विश्वास रखने के लिये प्रेरित करते हैं. आपका जीवन नवकार महामंत्र के प्रभाव की विकासयात्रा का प्रकट रूप है. विकल्पविधि के ज्ञाता, लिपि-गणित-शब्द-अर्थ-निमित्त-उत्पाद और पुराण को ग्रहण कर उनके रहस्यों को जाननेवाले आचार्यों को भावभरी वंदना. ० सौजन्य शाईन डीझाईन प्रा. लि., मुंबई 19

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175