Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 117
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक स्त्री-पुरूषों की कलाएँ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म, जब दो कोडाकोडी सागर की स्थिति वाले तृतीय आरक के समाप्त होने में ८४ लाख पूर्व, ३ वर्ष, ८ मास और १५ दिन शेष थे, तब १४वें कुलकर पिता नाभिराय एवं माता मरूदेवी के पुत्र रूप में हुआ. श्रीमद् भागवत में भी प्रथम मनु स्वयंभुव के मन्वन्तर में ही उनके वंशज अग्निध्र से नाभि और नाभि से ऋषभदेव का जन्म होना माना गया है. भगवान ऋषभदेव के जन्म काल तक मानव समाज किसी कुल-जाति अथवा वंश के विभाग में विभक्त नहीं था. प्रभु ऋषभ जब एक वर्ष से कुछ कम वय के थे, उस समय एक हाथ में इक्षुदण्ड लिये वज्रपाणि देवराज शक्र उनके समक्ष उपस्थित हुए. देवेन्द्र शक्र के हाथ में इक्षुदण्ड देखकर शिशु-जिन ऋषभदेव ने उसे प्राप्त करने के लिए अपना प्रशस्त लक्षणयुक्त दक्षिण हस्त आगे बढ़ाया. यह देख देवराज शक्र ने सर्वप्रथम प्रभु की इक्षु भक्षण की रूचि जानकर त्रैलोक्य प्रदीप तीर्थंकर प्रभु ऋषभ के वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश रखा. उसी प्रकार इक्षु के काटने और छेदन करने के कारण धारा बहने से भगवान का गोत्र 'काश्यप' रखा गया. तीन ज्ञान के धनी कुमार ऋषभदेव ने मनुष्य को खाने योग्य अन्न, फल-फूल और पत्तों का भली भांति परिचय कराया. कच्चे धान को पकाने की कला भी उन्होंने ही सिखायी. कुमार ऋषभ के भरत एवं बाहुबली सहित १०० पुत्र तथा ब्राह्मी और सुन्दरी दो पुत्रियाँ हुई. प्रभु ऋषभदेव ने भरत आदि पुत्रों के माध्यम से उस समय के लोगों को पुरूषों की जिन ७२ कलाओं का प्रशिक्षण दिया, वे इस प्रकार हैं :पुरूषों की ७२ कलाएँ १. लेखन १९. आर्य भाषा में कविता निर्माण ३७. दण्ड लक्षण जानना २. गणित २०. प्रहेलिका ३८. तलवार के लक्षण जानना ३. रुप २१. छन्द बनाना ३९. मणि लक्षण जानना ४. संगीत २२. गाथा निर्माण ४०. चक्रवर्ती के काकिणी रत्नविशेष ५. नृत्य २३. श्लोक निर्माण के लक्षण जानना ६. वाद्यवादन २४. सुगन्धित पदार्थ निर्माण ४१. चर्म लक्षण जानना ७. स्वरज्ञान २५. षट् रस निर्माण ४२. चन्द्र लक्षण जानना ८. मृदंगवादन २६. अलंकार निर्माण व धारण ४३. सूर्य आदि की गति जानना ९. तालदेना २७. स्त्री शिक्षा ४४. राहु की गति जानना १०. चूत कला २८. स्त्री के लक्षण जानना ४५. ग्रहों की गति ज्ञान ११. वार्तालाप २९. पुरुष के लक्षण जानना ४६. सौभाग्य का ज्ञान १२. संरक्षण ३०. घोडे के लक्षण जानना ४७. दुर्भाग्य का ज्ञान १३. पासा खेलना ३१. हाथी के लक्षण जानना ४८. प्रज्ञप्ति आदि विद्या ज्ञान १४. मिट्टी पानी से वस्तु बनाना ३२. गाय व वृषभ के लक्षण जानना ४९. मंत्र साधना १५. अन्न उत्पादन ३३. कुकुट के लक्षण जानना ५०. गुप्त वस्तु ज्ञान १६. पानी शुद्धि ३४. मेढक के लक्षण जानना ५१. वस्तु वृत्त का ज्ञान १७. वस्त्र बनाना ३५. चक्र लक्षण जानना ५२. सैन्य प्रमाण आदि ज्ञान १८. शय्या निर्माण ३६. छत्र लक्षण जानना ५३. प्रति व्यूह निर्माण 115

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