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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
से मुक्त किया था. उसे जैन सेनापतियों के कारण अनेक उल्लेखनीय विजय प्राप्त हुआ था. उसका शासन एक ऐसी घटना के कारण बहुत प्रसिद्ध है, जिसने कर्नाटक तथा दक्षिण भारत के समस्त इतिहास को प्रभावित किया था. वह घटना थी आचार्य रामानुज के प्रभाव से उसका जैनधर्म को छोड़कर वैष्णवधर्म को अंगीकार करना. धर्म परिवर्तन करने के फलस्वरूप बिट्टिगदेव ने जैनों को कोल्हू में पिलवा दिया था. बिट्टिगदेव के धर्म परिवर्तन करने पर भी उनकी पत्नी शान्तलदेवी ने धर्म परिवर्तन नहीं किया. वह जैनों को दान देती रही. विष्णुवर्द्धन का मन्त्री और सेनापति गंगराज भी जैनधर्म के उन्नायकों में गिना जाता था. उसने जैन मन्दिरों का निर्माण तथा जीर्णोद्धार कराया और गुरुओं तथा मूर्तियों की सुरक्षा की.
विष्णुवर्द्धन के पश्चात् उसका पुत्र नरसिंह प्रथम गद्दी पर बैठा. उसके समय में होयसल साम्राज्य की महत्ता बहुत बढ़ चुकी थी. उसका सेनापति हुल्ल जैनधर्म का अनन्य भक्त था. राजा नरसिंहदेव ने जैनधर्म के प्रति जो उदारता बरती, उसमें हल्ल का विशेष सहयोग था. नरसिंहदेव के पुत्र का नाम बल्लाल द्वितीय था. उसके राज्यकाल में एकबार पुनः तलवारें चमकीं और होयसल नरेश ने स्याद्वाद सिद्धान्त के प्रति अपना पक्षपात व्यक्त किया. नरसिंहदेव के धर्मगुरु बलात्कार गण के माघनन्दि सिद्धान्तदेव थे. जो अभिनव सार चतुष्टय के सिद्धान्तसार, श्रावकाचार सार, पदार्थसार तथा शास्त्रसार समुच्चय के रचयिता थे. __उपर्युक्त विवरणों से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक सिद्धान्तों के पीछे यदि राजनीतिक शक्तियाँ न हों तो उनका समाज पर स्थायी प्रभाव नहीं होता. यही कारण है कि जैनाचार्यों ने केवल मोक्षाभिलाषी भव्य जीवों का ही निर्माण नहीं किया, बल्कि ऐसे राजाओं, मंत्रियों और सेनापतियों का भी निर्माण किया, जो अहिंसा प्रधान जैन धर्मावलम्बी होते हुए भी शत्रुओं से अपने देश को मुक्त कराने की क्षमता रखते थे. ऐसे महापुरुषों में सर्वप्रथम उल्लेखनीय चामुण्डराय हैं. जिनके समान बहादुर और भक्त जैन दक्षिण में दूसरा नहीं हुआ.
भोजन विषयक
भोजन आधा पेट कर, दुगुना पानी पी। तीगुना श्रम, चौगुनी हँसी, वर्ष सवासौ जी।।
आरोग्य उसी व्यक्ति को ढूँढता है. जो खाली पेट होने पर भोजन करता है।
एवं रोग उसी आदमी को खोजता है जो अमर्यादित खाता है।।
धनवान होने पर भी अतिथियों का आदर-सत्कार नहीं करता वह नितान्त दरिद्र है। और जो निर्धन होने पर भी अतिथियों का सम्मान करता है वह दरअसल धनवान है।।
અમર્યાદિત ભોજન આરોગ્યનાશક બને છે.
ભરપેટ ભોજન આરોગ્યપાલક બને છે. પ્રમાણસર ભોજન આરોગ્યવર્ધક બને છે.
'आहार शुद्धौ सत्त्व शुद्धिः શુદ્ધ, શાકાહારી અને સાત્વિક આહાર લેવાથી મન પવિત્ર અને શુદ્ધ બને છે.
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