Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 118
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक ५४. सैन्य संचालन ६१. नगर निर्माण का ज्ञान ६८. बाहुयुद्ध ५५. व्यूह निर्माण ६२. थोडे को अधिक करना ६९. सुत्ताखेड आदि वस्तु स्वभाव ५६. सेना के पडाव का ज्ञान ६३. शस्त्र निर्माण ज्ञान ५७. नगर प्रमाण ज्ञान ६४. अश्व शिक्षा ७०. पत्र छेदन कला ५८. वस्तु प्रमाण ज्ञान ६५. हस्ति शिक्षा ७१. सजीवन निर्जीवन कला ५९. सैन्य पडाव निर्माण ज्ञान ६६. धनुष विद्या ७२. पक्षी के शब्द से शुभाशुभ ६०. वस्तु स्थापन ज्ञान ६७. सुवर्णादि धातु पाक जानना महिलाओं की ६४ कलाएँ पुरूषों के लिए कला-विज्ञान की शिक्षा देकर प्रभु ने महिलाओं के जीवन को भी उपयोगी व शिक्षा सम्पन्न करना आवश्यक समझा. अपनी पुत्री ब्राह्मी के माध्यम से उन्होंने लिपि-ज्ञान तो दिया ही, इसके साथ ही साथ महिला-गुणो के रूप में ६४ कलाएँ भी सिखलाई. वे ६४ कलाएँ इस प्रकार है :१. नृत्य-कला २३. वर्णिका वृद्धि ४५. कथाकथन २. औचित्य २४. सुवर्ण सिद्धि ४६. पुष्प गुन्थन ३. चित्र-कला २५. सुरभितैल्करण ४७. वक्रोक्तिजल्पन ४. वाद्य-कला २६. लीलासंचरण ४८. काव्यरचना ५. मंत्र २७. गजतुरंग परीक्षण ४९. स्फारवेश ६. तंत्र २८. पुरूष-स्त्री लक्षण ५०. सर्वभाषा ज्ञान ७. ज्ञान २९. सुवर्ण रत्न भेद ५१. अभिधान-ज्ञान ८. विज्ञान ३०. अष्टादशलिपि ज्ञान ५२. भूषण-परिधान ९. दम्भ ३१. तत्काल बुद्धि ५३. भृत्योपचार १०. जलस्तम्भ ३२. वस्तु सिद्धि ५४. गृहाचार ११. गीतमान ३३. कामक्रीडा ५५. पाठ्यकरण १२. तालमान ३४. वैद्यकविद्या ५६. परनिराकरण १३. मेघवृष्टि ३५. घटभ्रम ५७. धान्यरन्धन १४. फलाकृष्टि ३६. सारपरिश्रम ५८. केश बन्धन १५. आराम रोपण ३७. अंजनयोग ५९. वीणादिवादन १६. आकार गोपन ३८. चूर्णयोग ६०. वितण्डावाद १७. धर्म विचार ३९. हस्तलाघव ६१. अंक विचार १८. शकुनविचार ४०. वचन चातुर्य्य ६२. लोक व्यवहार १९. क्रिया कल्पन ४१. भोज्य विधि ६३. अन्त्याक्षरिका २०. संस्कृत जल्पन ४२. वाणिज्य विधि ६४. प्रश्न प्रहेलिका २१. प्रसाद नीति ४३. मुखमण्डन कल्पसूत्र से उद्धृत. २२. धर्म रीति ४४. शालि खण्डन 116

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