Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 175
________________ गगन की तरह अपरिमित ज्ञानी, मतिकेतु-श्रुतकेतु, अतिन्द्रियार्थदर्शी, सूत्रार्थ में अति निपुण, एक मात्र मोक्ष सुख के गवेषक तथा दोष-दुर्गुणों से रहित आचार्यों के चरणों में कोटि-कोटि वंदन. नाहर बिल्डर्स मुंबई SHREE NAMINATH PRINTERS M-9825042651 पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक

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