Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 165
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक जीवन जीने की कला राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी जीवन सभी प्राणी जीते हैं. परन्तु किसी-किसी का जीवन उदाहरण बन जाता है. यदि हम उदाहरण नहीं बन सकते तो कोई बात नहीं परन्तु अपना जीवन सुखमय व्यतीत करने के लिए विचार करना आवश्यक है. अपने व्यवहार से, कार्य से, वचन से समाज में ऐसा वातावरण तैयार करें कि लोगों में आप आदरणीय बन जाएँ. इसके लिए कुछेक मननीय बातें प्रस्तुत हैं. अनुमोदन : आज हम किसी के अच्छे कार्य की भी अनुमोदना-प्रशंसा नहीं करते हैं. किसी के अच्छे काम की प्रशंसा के बजाए उसकी निंदा करना नहीं भूलते हैं. हम खाने के बाद गुणानुवाद तो दूर रहा, अवर्ण वाद जरुर करेंगे. एक व्यक्ति ने अपनी मंगल भावना के साथ भोजन का आयोजन किया. लोग खाने बैठे, उसने खीर परोसी तो उसको खाकर एक व्यक्ति ने अनुमोदना करने के बजाय उल्टा मुंह बिगाडा, जैसे केस्टर आयल पी लिया हो. आपने कभी मुसलमानों से नहीं सीखा कि कार्य की अनुमोदना कैसे करें? मुसलमानों के यहाँ भी भोज के आयोजन होते हैं. आप किसी भी मुसलमान से पूछ ले- भई, उसने क्या खिलाया? वह भले ही तेल का सीरा खाकर आया होगा, पर यही कहेगा- क्या लाजवाब रसोई थी. सुबह खाया था. शाम तक मुंह से सीरे का ही स्वाद आता रहा. वो खाने की अनुमोदना ही करेंगे न कि हमारी तरह मुंह बिगाडेंगे, कभी अपने जाति भाई की निंदा नहीं करेंगे. ___ मुसलमानों का यह गुण आपको भी अपनाना चाहिये. अपने जीवन व्यवहार में इस गुण का समावेश करे. किसी के अच्छे कार्य की अनुमोदना ही करें, न कि आलोचना. सहयोग : जीवन जीने की एक कला यह भी है. अमेरिका की यह घटना है. रात्रि का समय, एक व्यक्ति अपनी गाडी से समुद्र के किनारे-किनारे जा रहा था. समुद्र के किनारे की हवा खाने का मन हुआ तो गाडी रोकी और उतर कर समुद्र की तरफ चला गया. पीछे से कोई बडी गाडी निकली. हाइवे रोड पर एक गाडी खडी देखकर पीछे वाली गाडी के ड्राईवर ने सोचा-ये गाडी यहाँ क्यों खडी है. कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. उसके मन में कई तरह की शंकाएँ जन्म लेने लगी. मानवता के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं उसकी रक्षा करूं. उसे मित्र को लेने के लिये एयरोड्राम जाना था. देर हो रही थी पर यहाँ मानवता का सवाल था. मानव जीवन के कर्तव्य की पुकार थी. अपनी गाडी से नीचे उतरा और अगली गाडी के अंदर झांक कर देखा. गाडी खाली थी और काफी दूरी पर समुद्र की ओर एक आदमी उसे जाता हुआ दिखाई दिया. उसके दिमाग में आया कि ये अवश्य ही आत्मघात के लिये जा रहा है. संसार से दुखी लगता है. यह अवश्य मर जायेगा. वह दौडकर अगले व्यक्ति के नजदीक आया और उसे समझाया -मित्र, यह जीवन बडा ही मूल्यवान है. मरना बडा सरल है, क्यो कायर की तरह मर रहे हो. यह मेरा एड्रेस और ये ५ डालर रखो. अगर भूखे हो तो खाना खा लेना. कल मेरे आफिस चले आना. मैं तुम्हें काम दूंगा, और हर संभव संहयोग दूंगा. अभी मैं जल्दी में हूँ. यह मेरी भेंट ले लो, इसका तिरस्कार न करना. हवा खोरी के लिये आया व्यक्ति स्तब्ध रह गया. उसे बोलने का भी अवसर नहीं मिला. पीछे वाला व्यक्ति तुरन्त पलटा और तेजी से अपनी गाडी की ओर लौट पडा. पहले वाला व्यक्ति अपने हाथ में एड्रेस कार्ड और ५ डालर लिये अपनी गाडी में आ बैठा. अब उसके हृदय में विचार का आन्दोलन शुरु हुआ. मैं भले ही करोडपति हूँ, पर मेरा आज तक का जीवन निष्फल गया. मैंने कभी परोपकार का कार्य नहीं किया. जीवन तो इस व्यक्ति का है जो दूसरों के लिये भी सोचता है. दूसरों के दुख दर्द में काम आता हैं. उस व्यक्ति के मात्र २ मिनट के अल्प परिचय से उसके जीवन के अंदर परिवर्तन आया. कुछ ही महीनों के बाद न्यूयार्क टाइम्स के अंदर एक समाचार पढा कि कोई बहुत बड़ी कंपनी भयंकर घाटे में जा रही है. शायद दिवाला निकल जाये. कम्पनी का नाम उसे कुछ परिचित सा लगा. अपने पास के एड्रेस कार्ड से मिलाया तो उसने देखा कि यह कंपनी तो उसी 163

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