Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 172
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक - महाराज ने नियम दे दिया और कहा-धन्यवाद. इतना भी तुम लो तो धीरे-धीरे यह परिग्रह रुप ले लेगा. इस बात को काफी समय बीत गया. एक दिन मफतलाल कुछ लेट उठे. कुम्हार अपनी दिनचर्या के अनुसार गधे को लेकर खेत चला गया था. उठते ही मफतलाल ने सामने देखा वहाँ कुम्हार नहीं था. घर में पूछा तो पता लगा कि कुम्हार तो खेत में जा चुका है, बारह बजे के पहले आने वाला नहीं है. सेठ मफतलाल ने कहा- गजब हो गया, तब तो मेरी ही बारह बज जायेगी. यहाँ तो उठते ही चाय चाहिए. अब क्या करें ? आखिरकार मफतलाल ने कुम्हार के खेत का पता मालुम किया और घोडा लेकर रवाना हो गये. कुम्हार खेत में से मिट्टी निकाल रहा था. पसीने से भरी टाट, सूर्य की रोशनी में चमकी. मफतलाल ने घोडे पर बैठे-बैठे जब कुम्हार को टाट देखी तो इतना प्रसन्न हुआ कि प्रसन्नता के अतिरेक में चिल्ला उठा -देख लिया, देख लिया. उधर कुम्हार को गढ्ढा खोदते समय संयोगवश काफी सामान निकल आया था. काफी कीमती रत्न आभूषण थे. कुम्हार ने देखा- यह तो मफतलाल है. इसने अगर गाँव में जाकर कह दिया तो सारा माल लुट जायेगा. ठाकुर ले जायेगा. उसने मफतलाल से कहा- अरे ! जो भी है, आधा-आधा बांट ले. मफतलाल ने देखा कि सोना -चांदी दुनियां भर का बहुमूल्य सामान पडा है. मफतलाल खुश हो गया. अपने हिस्से का आधा माल पोटली में डाल घर ले आया. फिर तो वह रोने लगा कि -लाख धिक्कार है मुझे. महाराज ने मेरे को कितना समझाया, पर मैं नहीं माना. जाते जाते एक नियम मैंने लिया और उसी नियम के प्रभाव से कितनी संपत्ति मुझे मिल गई. घर का सारा दारिद्र्य समाप्त हो गया. घर में जो समस्या थी, वह नियम के पुण्य प्रताप से खत्म हो गई. यदि मैंने पहले ही नियम ले लिये होते तो मेरा पहले ही कल्याण हो जाता. तो मेरे कहने का मतलब है कि एक भी लिया हुआ नियम कभी निष्फल नहीं जाता. आपका जीवन नियमों में बंधा रहेगा. तो नियमों के पुण्य प्रभाव से आपका सारा जीवन ही बदल जायेगा. आपको मानसिक शांति तो प्राप्त होगी ही. उसके साथ -साथ जीवन दृष्टि भी बदल जायेगी. उपरोक्त तथ्यों को यदि अपने जीवन में हम आंशिक रूप से भी ग्रहण करें तो हम बेहतर जीवन जी सकते हैं. मन में करुणा, दया, प्रेम, मैत्री आदि का भाव तथा अपने आस-पास के लोगों के साथ सदा सम्यक व्यवहार रखें तो हम सुखमय जीवन जी सकते हैं. અરિહંત પરમાત્મા પુણયની oisiી છે. ણિાધુ ભગવંતો સુખના ભંડાર છે . આયાર્ય ભગવંતો ગુણના ભંડાર છે. ઉપાધ્યાય ભગવંતો વિનયની ભંsiણ છે સાધુ ભગવંતો સહાય ના ભંડાર છે સથગ દર્શન રોહનો ભંડાર છે સમ્યગ જ્ઞાન ણવિચારનો ભંડાર છે યાશિ ણ આયણનો ભંડાર છે. રાયણ તપ સંતોષનો ભંડાર છે. 170

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