Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 134
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक तथा मात्र मुनि आचार्य भगवंत के साथ वहाँ विकट तपस्या करने लगे. एक दिन दैवयोग से राजा के जामाता (कहीं कहीं राजा के पुत्र का भी उल्लेख मिलता है.) त्रिलोकसिंह को सोते समय सर्प ने डस लिया. इस समाचार से सारे शहर में हाहाकार मच गया. जब उसे श्मशान यात्रा के लिए ले जाया जाने लगा तो आचार्यश्री के शिष्य वीर धवन ने गुरु महाराज के चरणों का प्रक्षाल कर उसके ऊपर छिड़क दिया. ऐसा करते ही वह जीवित हो उठा. इससे सब लोग प्रसन्न हो गए तथा राजा ने प्रसन्न होकर बहुमूल्य स्वर्णमुद्राओं से भरा हुआ थाल आचार्य श्री के चरणों में समर्पित किया. आचार्य श्री ने कहा- राजन, इस द्रव्य और वैभव से हमें कोई प्रयोजन नहीं, हम तो यही चाहते हैं कि आप मिथ्यात्व को छोड़कर परम पवित्र जैन धर्म को श्रद्धा सहित स्वीकार करें. सबने आचार्य श्री के उपदेशों का श्रवण किया तथा श्रावक के बारह व्रतों का ग्रहण कर जैन धर्म को अंगीकार किया. तभी से ओसिया नगरी के नाम से इन लोगों की गणना ओसवाल वंश में की गई. उस समय निम्नलिखित १८ गोत्रों की स्थापना की गई. दक्षिणबाहुगोत्र (9) तातहडगोत्र (२) वाफणागोत्र (३) कर्णाटगोत्र (४) बलहागोत्र (५) मोरक्षगोत्र (६) कुलहटगोत्र (७) वीरहटगोत्र (८) श्रीमालगोत्र (९) श्रेष्ठिगोत्र वामबाहुगोत्र (१) सुचंतिगोत्र (२) आदित्यनागगोत्र (३) भूरिगोत्र (४) भाद्रगोत्र (५) चिंचटगोत्र (६) कुंभटगोत्र (७) कन्नोजियेगोत्र (८) डिडूगोत्र (९) लघुश्रेष्टिगोत्र. इन अठारह गोत्रों का विस्तार पूर्वक अध्ययन करने पर एक-एक गोत्र से कितनी-कितनी शाखाएँ रूप ज्ञातियाँ निकले हैं, उनके नाम निम्नलिखित हैं. १. मूलगोत्र तातेड- तातेड, तोडियाणि, चौमोला, कौसीया, धावडा, चैनावत, तलोवडा, नरवरा, संघवी, डुंगरीया, चौधरी, रावत, मालावत, सुरती, जोखेला, पांचावत, बिनायका, साढेरावा, नागडा, पाका, हरसोता, केलाणी इस तरह २२ जातियाँ तातेडों से निकली हैं ये सब भाई हैं. २. मूलगोत्र बाफणा - बाफणा (बहुफूणा), नहटा (नहटा/नावटा), भोपाला, भूतिया, भाभू, नावसरा, मुंगडिया, डागरेचा, चमकीया, जांघडा, कोटेचा, बाला, धातुरिया, तियणा, कुरा, बेताला, सलगणा, बुचाणि, सावलिया, तोसटिया, गांधी, कोटारी, खोखरा, पटवा, दफ्तरी, गोडावत, कूचेरीया, बालीया, संघवी, सोनावत, सेलोत, भावडा, लघुनाहटा, पंचवया, हूडिया, टाटीया, ठगा, लघुचमकीया, बोहरा, मीठाडीया, मारु, रणधीरा, ब्रह्योचा, पाटलीया, वानुणा, ताकलीया, योद्धा, धारोया, दुद्धिया, बादोला, शुकनीया इस तरह ५२ जातियाँ बाफणा से निकली हुई आपस में भाई हैं. ३. मूलगोत्र करणावट- करणावट, वागडिया, संघवी, रणसोत, आच्छा, दादलिया, हुना, काकेचा, थंभोरा, गुंदेचा, जीतोत, लांभाणी, संखला एवं भीनमाला इस तरह १४ शाखाएँ निकलीं ,वे सभी आपस में भाई हैं. ४. मूलगोत्र बलाहा- बलाहा, रांका, वांका, सेठ, शेठीया, छावत, चोधरी, लाला, बोहरा, भूतेडा, कोटारी, लघुरांका, देपारा, नेरा, सुखिया, पाटोत, पेपसरा, जडिया, सालीपुरा, चितोडा, हाका, संघवी, कागडा, कुशलोत, फलोदीया इस तरह २६ शाखाएँ बलाहा गोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. ५. मूलगोत्र मोरख- मोरख, पोकरणा, संघवी, तेजारा, लघुपोकरणा, वांदोलीया, चुंगा, लघुचंगा, राजा, चोधरि, गोरीवाल, केदारा, वातोकडा, करचु, कोलोरा, शीगाला, कोटारी इस तरह १७ शाखाएँ मोरखगोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. ६. मूलगोत्र कुलहट- कुलहट, सुरचा, सुसाणी, पुकारा, मंसाणीया, खोडीया, संघवी, लघुसुखा, बोरडा, चोधरी सुराणीया, साखेचा, कटारा, हाकडा, जालोरी, मन्त्री, पालखीया, खूमाणा इस तरह १८ शाखाएँ कुलहट गोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. ७. मूलगोत्र विरहट- विरहट, भुरंट, तुहाणा, ओसवाला, लघुभुरंट, गागा, नोपत्ता, संघवी, निबोलीया, हांसा, धारीया, 132

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