Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 61
________________ पंन्यास प्रवस्त्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक हम अन्यत्र उपलब्ध प्राचीन व अर्वाचीन जैन साहित्य की सूचनाओं का ऐसा विशिष्ट संग्रह करेंगे कि यहाँ से जैन साहित्य संबधी सूचनाएँ प्राप्त करना हर किसी के लिए अपने आप में एक आह्लादक अनुभव बन जाय. हम सुखद भविष्य का निर्माण करने में सक्षम सिद्ध होंगे सांस्कृतिक-पुरातात्विक धरोहरों को यथारूप आने वाली पीढी को सौंप कर, हम अतीत को गौरव प्रदान करेंगे जैन एवं आर्य सांस्कृतिक-पुरातात्विक धरोहर रूप नमूनों और कलावशेषों को विशिष्ट आधुनिक तकनीक द्वारा संरक्षित कर. हमारा अस्तित्व गौरवप्रद होगा जैन मात्र व समग्र जगत के लिए. हम सदा अग्रसर रहेंगे जैन साहित्य के अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में. हम समाधान के रूप में बने रहेंगे जैन साहित्य के अन्वेषण-संशोधन के आने वाली प्रत्येक समस्याओं के लिए. हमारा प्रेरणा स्रोत होगा जिनाज्ञा एवं श्रमणों का मार्गदर्शन, પાંચ પ્રકારની ક્ષમા અપકાર ક્ષમા : મારૂં બગાડશે, અહિત કરશે એમ માની ક્ષમા આપે. ઉપકાર ક્ષમા : મારો ઉપકારી છે માટે ક્ષમા આપે. તિર્યંચને પણ હોય. વચન ક્ષમા : હું બોલીશ તો ૧૦ સાંભળવી પડશે. જેથી ક્ષમા રાખે. વિપાક ક્ષમા : કર્મોના વિપાક વિચારી ક્ષમા રાખે. ધર્મ ક્ષમા : લોકોત્તર ક્ષમા - સહન કરવું તે મારો ધર્મ છે. ધર્મ માનીને ખમાવે. NU છોડવીણા દોષણક્ષા યાને પંદર ફિlaiાળા સ્વરૂપના નાના oldી છplીણ ગુણોથી યુકti માથાર્થોને વંદન सोन्य યોસ.જોગાણી : કંપની, a[બઈ શૈલેશભાઈ જોગાણી, મુંબઈ

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