Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 109
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक झांझणशा ऊकेश वंशीय पेथड शेठ के दानी और धर्मनुरागी पुत्र. सं. १३४० में मंडपदुर्ग से संघ लेकर शत्रुजय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा के लिए प्रस्थान किया. बालपुर में २४ जिन प्रतिमाओ की स्थापना, चित्रकूट में चैत्य परिपाटी, करहेटक में पार्श्वनाथ भगवान का ७ तल्ला का मंडपों से युक्त बडा मंदिर बनाया. सारंगदेव राजा के एक मागध को उसके काव्य से प्रसन्न होकर दान दिया एवं ९६ राजबंदी को मुक्ति दिलायी. देदाशा ऊकेश वंशीय देद नामक दरिद्रि श्रावक योगी से सिद्ध हुआ सुवर्ण रस प्राप्त होने से श्रीमंत हुआ. खंभात में पार्श्वनाथ भगवान की पूजा कर के सुवर्णदान करने से लोगों ने 'कनकगिरि' का बिरूद दिआ. देवगिरि में महा विशाल धर्मशाला-पौषधशाला का निर्माण. पेथड, झांझण जैसे भाग्यवान पुत्र और पौत्र. गुर्जराधीश भी उनके मित्र थे समराशा सं. १३७१ में पालीताणा तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया. धनजी सूरा अहमदाबाद नगर में रहते थे. महोपाध्याय यशोविजयजी के अष्टावधान को देखकर अतिप्रसन्न हुए और अधिक अभ्यास के लिए काशी भेजने एवं वहाँ के तमाम अभ्यास के खर्च का लाभ लिया था. नरशी नाथा मुंबई में अनंतनाथ जिनालय का निर्माण किया. सं. १९२० में शत्रुजय का संघ निकाला और वहां चंद्रप्रभस्वामी का जिनालय व धर्मशाला का निर्माण किया. कच्छी समाज में समूह लग्न का प्रारंभ करवाया. उनके नाम से मुंबई में नरशी नाथा स्ट्रीट नामक एरिया है. भामाशा महाराणा प्रताप की सभा में मंत्री थे. राज्य के कठिन समय में राजा को अपना संपूर्ण धन देकर राष्ट्रभक्ति की एक मिशाल कायम की. वस्तुपाल-तेजपाल की तरह मारवाड में उनका नाम प्रसिद्ध था. समस्त महाजन ज्ञाति का संमेलन होता था तब सर्वप्रथम उनको तिलक किया जाता था. भीमा कुंडलिया पालिताणा में हो रही मंदिर जीर्णोद्धार की टीप में अपना सर्वस्व (मात्र सात द्रम्म) दान में दे दिया. मंत्री बाहड ने ५०० स्वर्णमुद्राएँ देकर सन्मान करना चाहा, तो भी उसका साफ इन्कार कर दिया और कहा कि यह सन्मान लेकर मै अपना पुण्य बेचना नहीं चाहता. 107

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