Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 98
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक देव-इन्द्र-यक्ष आदि का वर्णन तथा प्रायश्चित्त विधि का वर्णन है. ३८. अध्यात्मकल्पद्रुम - आ. मुनिसुन्दरसूरिजी द्वारा रचित इस ग्रंथ में समता का स्वरूप क्या है, स्त्री-पुत्र-धन-शरीर पर से ममता कैसे छूटे, विषय-प्रमाद, कषायों का निग्रह कैसे हो, चार गति का स्वरूप, शास्त्र के गुण क्या है इत्यादि का वर्णन बड़ा प्रभाव पूर्ण है. वैराग्य प्रतिपादन हेतु उत्तम ग्रंथरत्न है. ३९. समरादित्यकथा - आ. श्रीहरिभद्रसूरिजी द्वारा रचित यह धर्मकथा के साथ-साथ प्राकृत भाषा का विशाल ग्रंथ है. इसमें ९ प्रकरण हैं जो ९ भवनाम से कहे गये हैं. इस कथाग्रंथ में दो ही आत्माओं का विस्तृत एवं सरल वर्णन है. वे हैं - उज्जैन नरेश समरादित्य और उन्हें अग्नि द्वारा भस्मसात् करने में तत्पर गिरिसेन चाण्डाल. एक अपने पूर्व भवों के पापों का पश्चाताप, क्षमा, मैत्री आदि भावनाओं द्वारा उत्तरोत्तर विकास करता है और अन्त में परमज्ञानी और मुक्त हो जाता है, तो दूसरा प्रतिशोध की भावना लिए संसार में बुरी तरह फँसा रहता है. इस कथानक के माध्यम से जन्म-जन्मांतर के कर्मों के फल कैसे पीछा करते हैं, इसका वर्णन किया गया है. ___४०. धर्मसंग्रह - उपाध्याय मानविजयजी कृत यह ग्रन्थ साधु एवं श्रावकोपयोगी है. इसके अन्दर चरण, करणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग के विषय संकलित हैं. संस्कृत व प्राकृत भाषा में रचित यह ग्रन्थ तीन अधिकारों में विभाजित है. ४१. धर्मरत्न प्रकरण - आ. शान्तिसूरि द्वारा रचित इस ग्रन्थ में श्रावकों के लिए आराधनामूलक विषयों का संकलन किया गया है. यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में टीका तथा गुजराती व हिन्दी में कई अनुवाद, विवेचन प्रवचन आदि किए गए हैं. ४२. द्रव्यसप्ततिका - उपाध्याय लावण्यविजयजी के द्वारा रचित इस ग्रन्थ में देवद्रव्यादि सात क्षेत्रों में द्रव्य व्यवस्था का सुन्दर निरूपण किया गया है. यह श्रीसंघों की पेढ़ी में रखने योग्य ग्रन्थ है, जिससे देव द्रव्यादि के सम्बन्ध में मार्गदर्शन प्राप्त हो सके. यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में टीका तथा गुजराती में कई अनुवाद, विवेचन आदि उपलब्ध हैं. ____४३. वसुदेवहिंडी - श्री संघदासगणि द्वारा रचित इस ग्रन्थ में प्राचीन महापुरुषों के चरित्र का वर्णन विस्तार के किया गया है. इसका प्रधान विषय धर्मकथानुयोग है. ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण यह ग्रन्थ अध्येताओं के लिए पूरक माहितियों का खजाना है. यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में टीका तथा गुजराती व हिन्दी में अनुवाद आदि उपलब्ध हैं. ४४. शास्त्रवार्ता समुच्चय - आचार्य हरिभद्रसूरिजी कृत इस ग्रन्थ में दर्शनों का स्याद्वाद से मिलान व समन्वयकारी तत्वों का विश्लेषण किया गया है. यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में छाया तथा गुजराती व हिन्दी में कई अनुवाद आदि उपलब्ध हैं. ___४५. भूवलय ग्रन्थ - इस ग्रंथ की रचना आचार्य श्री कुमुदेन्दु स्वामी ने ईस्वी सन् की आठवीं शताब्दी में की थी. हालांकि आचार्य कुमुदेन्दु ने ग्रंथ के मूल कर्ता बाहुबली को ही माना है. भरत बाहुबली युद्ध के बाद जब बाहुबली को वैराग्य हो गया, तब उन्होंने ज्ञानभंडार से भरे हुए इस काव्य को अन्तर्मुहुर्त में भरत चक्रवर्ती को सुनाया था. वही काव्य परम्परा से आता हुआ गणित पद्धति अनुसार अंक दृष्टि से कुमुदचन्द्राचार्य द्वारा चक्रबंध रूप में रचा गया है. पूर्वाचार्यों के समान इन्होंने ४६ मिनट में ग्रंथ को रचना की है, ऐसा व्यपदेश किया गया है. ७१८ भाषा, ३६३ धर्म तथा ६४ कलादि अर्थात तीन काल तीन लोक का, परमाणु से लेकर बृहद्ब्रह्माण्ड तक और अनादि काल से अनन्त काल तक होने वाले जीवों की संपूर्ण कथाएँ अथवा इतिहास लिखने के लिये प्रथम नौ नम्बर (अंक) लिया गया है. संपूर्ण भूवलय ग्रंथ की रचना ६४ अक्षरों में ही हुई है. इस भूवलय को गणित शास्त्र के आधार पर लिखा गया है. इस ग्रंथ में विश्व की समस्त भाषाओं यानी ७१८ भाषाओं का नामोल्लेख किया गया है, जिनमें १८ मुख्य भाषा एवं ७०० अन्य भाषाएँ हैं. मुख्य अठारह भाषाओं में प्राकृत, संस्कृत, द्रविड, अन्ध्र, महाराष्ट्र, मलयालम, गुर्जर, अंग, कलिंग, काश्मीर, कम्बोज, 96

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