Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 92
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान • महोत्सव विशेषांक सामायिक, २४ जिनस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और पच्चक्खाण का क्रमबद्ध वर्णन है. इसमें आत्मोत्थान के लिए प्रचुर उपयोगी पदार्थ हैं. अनेकों प्रासंगिक पदार्थों का संकलन भी इस आगम में किया गया है. इस पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध है निर्युक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी निर्युक्ति की अवचूर्णि, गणि धीरसुंदर चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर * अवचूर्णि आचार्य ज्ञानसागरसूरि * टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि (अपूर्ण) * दीपिका टीका, आचार्य माणिक्यशेखरसूरि * लघुवृत्ति, आचार्य तिलकाचार्य * शिष्यहिता टीका, आचार्य हरिभद्रसूरि. * दशवैकालिकसूत्र- ८३५ श्लोक प्रमाण. आचार्य श्रीशय्यंभवसूरिजीने अपने पुत्र मनक मुनि का अल्प आयुष्य जानकर पूर्व में से वैराग्य रस पोषक प्रचुर मात्रा में गाथाओं को लेकर दश अध्ययन रूपी कलशों में संग्रहित किया है. जिसका अमृत पान कर श्रमण अपने संयम भाव में सहजता से स्थिर हो सके. मनक मुनि के कालधर्म के बात श्रीसंघ की विनती से आचार्यश्रीने इस आगम को यथावत् रखा. इस आगम पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं * निर्युक्ति, आचार्य-भद्रबाहुस्वामी * चूर्णि, गणि-जिनदास महत्तर चूर्णि, आचार्य-अगस्तिसिंह तिलकाचार्य * दीपिका वृत्ति, उपाध्याय-समयसुंदर गणि * लघुटीका, आचार्य-सुमतिसूरि रत्नशेखरसूरि * शिष्यबोधिनी टीका, आचार्य- हरिभद्रसूरि उत्तराध्ययनसूत्र- २००० श्लोक प्रमाण. * 90 * टीका, आचार्य विवरणोद्धार, आचार्य परमात्मा श्रीमहावीर प्रभु का निर्वाण जब नजदीक आया, तब अंतिम हितशिक्षा रूप महत्वपूर्ण बातें लगातार सोलह तरह तक देशना द्वारा बताई. उन्हीं उपदेशों का संग्रह इसमें है. उस देशना में ९ मल्ली और ९ लच्छी राजा उपस्थित थे. वैराग्य, मुनिवरों के उच्च आचार, जीव अजीव, कर्मप्रकृति एवं लेश्या इत्यादि का रोचक वर्णन संगृहित है. इस पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं * * निर्युक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * चूर्णि, मुनि-गोवालियमहत्तर शिष्य * सुखबोधालघुवृत्ति, पंन्यास देवेंद्रगणी अधिरोहिणी वृत्ति, मुनि भावविजय * टीका, अज्ञात जैनाचार्य * दीपिका टीका, आचार्य जयकीर्तिसूरि * दीपिका टीका, मुनि विनयहंस * लघुटीका, अज्ञात जैनाचार्य * लेशार्थदीपिका टीका, अज्ञात जैनाचार्य * शिष्यहिता बृहद्वृत्ति, आचार्य शांतिसूरि * सर्वार्थसिद्धिटीका, उपाध्याय कमलसंयम * सुखबोधा लघुटीका, आचार्य नेमिचंद्रसूरि सुगमार्थ टीका, वाचक अभयकुशल * सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ. पिण्डनिर्युक्ति- ८३५ श्लोक प्रमाण इस सूत्र में गोचरी की शुद्धि का स्पष्ट वर्णन किया गया है. संयम साधना हेतु शरीर जरूरी है. शरीर को टिकाने हेतु पिण्ड यानि गोचरी जरूरी है इसलिए साधु गोचरी वहोरने जाय, तब उद्गम, उत्पादन व एषणा के दोषों से रहित आहार पानी लाकर ग्रासेषणा के दोष का त्याग करे, इसका सुंदर निरूपण किया गया है. इस नियुक्ति पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं दीपिका टीका, आचार्य माणेक्यशेखरसूरि * वृत्ति, आचार्य मलयगिरिसूरि * शिष्यहिता टीका, मुनि वीर गणि चूलिका सूत्र नंदीसूत्र- ७०० श्लोक प्रमाण परम मंगल रूप इस आगम में मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान व केवलज्ञान इन पांचों ज्ञानों का क्रमशः वर्णन किया गया है. द्वादशांगी का संक्षिप्त वर्णन बहुत सुंदर है. अनेक उपमाओं से श्रीसंघ का वर्णन, तीर्थंकरों व गणधरों के नाम, स्थविरों के संक्षिप्त चरित्र इत्यादि संकलित है.

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