Book Title: Shrutsagar Ank 2007 03 012
Author(s): Manoj Jain
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 84
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक उपलब्ध कराना इसकी खास विशेषता है. अब तक के छपे हुए सूचीपत्रों में एक या दो प्रकार से ही जानकारी मिल पाती है, परंतु इस सूचीपत्र में विविध पद्धत्तियों से अनेक प्रकार की जानकारियाँ हस्तगत हो सकती है. जैसे प्रारंभिक खंडों में प्रतनाम व प्रत संबंधित माहिती, दूसरे क्रम में कृति और कृतिगत माहिती, तीसरे क्रम में विद्वान विषयक माहिती और अंत में भाषा के आधार पर कृतियों का अकारादिक्रम इत्यादि मिलेगा. ध्यानाह है कि सूचीकरण के कार्य हेतु ग्रंथालय की किसी प्रस्थापित प्रणाली के अनुसार नहीं परंतु अनुभवों के आधार पर भारतीय साहित्य की लाक्षणिकताओं के अनुरूप बहुजनोपयोगी तर्कसंगत सूचिकरण प्रणाली विकसित की गई है व तदनुरूप कम्प्युटर में विशेष प्रोग्राम तैयार किया गया है. जिसके अन्तर्गत उपरोक्त सभी प्रकार की सूक्ष्मतम जानकारी मात्र यहीं पर पहली बार कम्प्यूटराईज की गई है. जैन साहित्य के विषय में संशोधन कर रहे गुरुभवंतों, संशोधको एवं विद्वानों को इस सूचीग्रंथ से कल्पनातीत लाभ मिल सकेगा. जिन्हें अतीत का इतिहास ढूंढना है, उन्हें वह भी मिलेगा. जिन्हें संस्कृत प्राकृत भाषा प्रधान साहित्य के क्षेत्र में कार्य करना है, उन्हें भी उस भाषा के ग्रन्थ विपुल प्रमाण में मिल सकेंगे. जिन्हें मारुगुर्जर और प्राचीन हिन्दी प्रधान साहित्य को उजागर करना है उन्हें ऐसी कृतियाँ भी मिल सकेगी. सूची ऐसी पद्धत्ति से बनाई गई है कि वाचकों को हस्तलिखित प्रतों का उपयोग करने में बड़ी सरलता रहेगी. हस्तप्रत को ग्रहण करने से पहले ही बहुत कुछ सुस्पष्ट हो जाए, ऐसी संपादन शैली रखी गई है. इस सूची के परिशिष्ट में प्राकृत, संस्कृत, मारुगुर्जर आदि भाषाओं के अनुसार अकारादिक्रम से कृति सूची दी गई है तथा साथ में प्रस्तुत सूची पत्र में उनकी जितनी प्रतियाँ है उनके सभी नंबर भी उपलब्ध कराये गये है. इस सूची में शामिल कतिपय महत्वपूर्ण ऐसी कृतियाँ मिली हैं, जो आज तक अप्रकट प्रतीत हुई है. उत्तराध्ययनसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, कल्पसूत्र इत्यादि आगमग्रंथों की टीकाएँ, अवचूरि आदि कृतियाँ संशोधको, विद्वानों को संपादन कार्य के लिए प्रेरित करने की क्षमता रखती हैं. हमारे महापुरुषों ने प्राकृत संस्कृत व देशी भाषा में शास्त्र ग्रंथों से लेकर उपदेश मूलक व व्यावहारिक शिक्षापरक अनेक कृतियाँ बनाई हैं. जैन श्रावक कवि ऋषभदास, पं. जिनहर्ष गणि, पं. समयसुंदर गणि तथा उपा. सकलचंदजी गणि आदि कवियों की अनेक कृतियाँ अभी भी अप्रकाशित हैं. जिन्हें इस क्षेत्र में काम करना हैं, उन्हें इस सूची से यत्र तत्र सर्वत्र भरपूर सामग्री मिलती है. उपाध्याय यशोविजयजी तथा आनंदघनजी के अनेक आध्यात्मिक पदों की अभी तक प्रायः अप्रसिद्ध प्रतीत होनेवाली कृतियाँ भी इन्हीं प्रतों में दिखाई देती हैं. यह सूची सुसंकलित, बहुआयामी होने के साथ साथ संशोधनपरक सूचनाओं की गहराई का परिचय देती है. इस हेतु इसमें हर जगह लघुतम आवश्यक निर्णायक सूचनाएँ दी गई है. इस सूची के भविष्य में अनेक प्रकार के संशोधन के स्रोत प्राप्त हो सकेंगे. धर्म, इतिहास, आराधना, चरित्र, विधिविधान, भाषा वैविध्य, पट्टावलियाँ, गच्छमत की महत्वपूर्ण अनेक कड़ियाँ भी प्राप्त हो सकेगी. कुल मिलाकर यह सूची एक सर्वतोग्राही उपयोगिता को लेकर संशोधन के क्षेत्र में निःसंदेह पथदर्शिका सिद्ध होगी. આરોગ્યવર્ધક ઔષધ ભોજન કર્યા પછી તરત જ ખાવાથી, મૈથુન કરવાથી, શ્રમ કરવાથી અને ઉંઘવાથી આયુષ્ય ઘટે છે. 82

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