Book Title: Shrutdeep Part 01
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 16
________________ सम्पादकीय पं. श्री कनककुशलगणि की प्रस्तुत कृति विशाललोचनदल स्तुति अवचूरि में जैन परंपरा के अंतिम (चौवीसवें) तीर्थंकर भ. महावीर की स्तुति वर्णित है। श्वेतांबर परंपरा में यह स्तुति प्रतिदिन प्रातःकालीन प्रतिक्रमण में गाइ जाती है। यह स्तुति पूर्वगत मानी जाती है। इसके कर्ता श्रीमत्तपागच्छनायकश्रीविजयसेनसूरिजी के शिष्य पंडित कनककुशलगणिजी है। जैन परंपरानो इतिहास के अनुसार वे आचार्य श्रीविजयसेनसूरिजी के शिष्य पंडित सोमकुशलगणि के शिष्य थे। पंडित कमलविजयगणी एवं महो.शांतिचंद्रगणी उनके विद्यागुरु थे। इनका समय सत्रहवी सदीका उत्तरार्ध है। प्रस्तुत कृति की रचना वि.सं. १६६६ कार्तिक सुद ३ मंगलवार के दिन सादडी में हुइ है। पं. कनककुशलगणि की २२ रचनाओं के नाम उपलब्ध होते है। पं. कनककुशलगणि की अन्य कृतियां : (१) जिनस्तुति (सं.१६४१) (ग्रंथाग्र-२८), (२) ऋषभनम्रस्तोत्र (सं.१६५२) (ग्रंथाग्र-४५७) कल्याणमन्दिरस्तोत्र टीका(सं.१६५२) (ग्रंथाग्र-६००)३, भक्तामरस्तोत्र टीका(सं.१६५२,सादडी) (५) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन (६) चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र टीका (सं.१६५२) (ग्रंथाग्र-५०१) (७) पञ्चमीपर्वस्तुति टीका (सं.१६५२) (८) विशाललोचनदलस्तुति अवचूरि (सं.१६५२,सादडी) (९) देवाः प्रभोऽयं स्तोत्र टीका (१०) शोभनस्तुति टीका (११) सकलार्हत् चैत्यवन्दन टीका (सं.१६५४) (१२) सौभाग्यपञ्चमीकथा (सं.१६५५, मेडता) (ग्रंथाग्र-१५२), (१३) दानप्रकाश (सं.१६५६) (प्र.८,श्लोक-७९०) (१४) रत्नाकरपञ्चविंशतिका टीका (सं.१६५६)५ १. द्रष्टव्य- जैन परंपरानो इतिहास भाग ४, प्रकरण- ५९,पत्र-३७५.सं.आ.श्री भद्रसेनसू.प्र. यशोवि. जैन आराधना भवन पालिताणा,वि.सं.२०६२ २. संदर्भ- जैन परंपरानो इतिहास भाग ४. प्रकरण-५९,पत्र-३७६( एपिग्राफिका इंडिया २/५९, प्राकृत जैनलेखसंग्रह भा.-२,जैनयुग वर्ष-२ अंक-३,जैनसत्यप्रकाश १५६) ३. इसकी हस्तप्रत के विषय में प्रो.वेबर द्वारा संकलित सूचिपत्र में उल्लेख है। नं.२९८३ (संदर्भ-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मो.दे देसाइ, पारा-८७०, सं.आ.मुनिचंद्रूसू., प्र.ॐकारसू. ज्ञानमंदिर, वि.सं.२०६२) ४. इसकी हस्तप्रत गुलाबकुमारी लायब्रेरी, कोलकाता, नं.४९३ में है। संदर्भ-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मो.दे देसाइ, पारा-८७०, सं.आ.मुनिचंद्रूसू., प्र.ॐकारसू.ज्ञानमंदिर, वि.सं.२०६२ ५. इसकी हस्तप्रत प्र.कांतिवि.संग्रह वडोदरा में है। संदर्भ-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मो.दे देसाइ,पारा-८७०,सं.आ.मुनिचंद्रसू.,प्र.ॐकारसू.ज्ञानमंदिर,वि.सं.२०६२

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