Book Title: Shrutavatar Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ काल है (सुषमान्या) सुषमा दूसरा काल है (सुषमा-दुषमा) उससे बाद का तीसरा काल सुषमा दुषमा है। (दुषम सुषमान्यां) दुषमा सुषमा उससे आगे का चौथा काल है। (दुष्षमाऽतिपूर्वा) दुषमा अन्तिम काल से पूर्व का पञ्चम काल है। (परास्यैव) इसी अवसर्पिणी का अन्तिम छठा काल दुषमा-दुषमा है। अर्थ- अवसर्पिणी का पहला काल सुषमा-सुपमा है। दूसरा काल सुषमा, तीसरा सुषमा-दुषमा चौथा दुषमा-सुषमा पाँचवाँ-दुषमा तधा छठा काल दुषमादुषमा है। उत्सर्पिणी के क्रमशः (१) दुषमा-दुषमा (२) दुषमा (३) दुषमा-सुषमा (४) सुषमा-दुषमा (५) सुषमा तथा (६) सुषमा-सुषमा हैं। तत्र क्र माच्चतसस्तिस्रो वे सागरोपमाख्यानाम् । कोटीकोट्यस्तिसृणामाद्यानां भवति परिमाणम् ॥७॥ अन्वयार्थ-- (तत्र) इन छह कालो में, (आंधान लिमृणा जाति के तीन कालों की (सुषमा-सुषमा, सुषमा, सुषमा दुषमा की (क्रमात्) क्रम से (कोटी कोट्यः) कोड़ा-कोड़ी (चतस्र) चार (तिस्रः) तीन तथा (दू सागरोपमाख्यानाम्) दो सागर प्रमाण (परिमाणं) स्थिति (भवति) होती हैं। अर्थ- उन छह कालों में से आदि के तीन कालों की क्रमशः- सुषमासुषमा, सुषमा तथा सुषमा दुषमा की चार कोड़ा-कोड़ी, तीन कोड़ा-कोड़ी तथा दो कोड़ा-कोड़ी सागर की स्थिति होती है सुषमा-सुषमा- चार कोड़ा-कोड़ी सागर सुषमा-तीन कोड़ा-कोड़ी सागर, सुषमा-दुषमा- दो कोड़ा-कोड़ी सागर प्रमाण स्थिति वाले हैं। कोटीकोटीवर्षसह रे तैश्चतुर्दशभिरूना । त्रिगुणैरम्भोधीनां परिमाणं भवति तुर्यायाः ||८|| अन्वयार्थ- (तुर्यायाः) चौथी अवसर्पिणी दुषमा सुषमा का (समय) (त्रिगुणैः) तीन गुणित (चतुर्दशभिः) चौदह (१४४३= ४२) (वर्ष सहः) हजार वर्ष (ऊना) कम (अम्भोधीनां) सागरों के कोटी कोट्य-कोड़ा-कोड़ी अर्थात् ब्यालीस सहस्र वर्ष न्यून कोड़ा-कोड़ी सागर (परिमाणं भवति) परिमाण होता है। श्रुतावतारPage Navigation
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