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अन्ये जगुर्गुहाया विनिर्गता 'नन्दिनो' महात्मानः । 'देवा'श्चाशोकयनात्पञ्चस्तूप्यास्ततः 'सेनः' ॥१७॥ विपुलतरशाल्मलीद्रुममूलगतावासवासिनो 'वीराः' 'भद्राश्च खण्डकेसरतरूमूलनिवासिनो जाताः ॥९८ ।।
अन्वयार्थ- (गुहाया विनिर्गता) गुहा से निकले हुए (महात्मानः नन्दिनः) महात्मा 'नन्दी' (अशोक वनात्) अशोक वन से आये हुए (देवाः) 'देव' (ततः) तदनन्तर (पञ्चस्तू प्यात्) पञ्चस्तूपों से (सेनः ) 'सेन' (विपुलतरशाल्मली द्रुममूलगता वास वासिनः) विपुल शाल्मली वृक्ष के मूल में आवास निवास करने वाले (वीराः) 'वीर' (खण्डकेसरतरुमूलनिवासिनः) खण्ड केसर वृक्षों के मूल में निवास करने वाले (भद्राः) भद्र' (जाताः) हुए (इति अन्ये जगु) ऐसा अन्य गुरु परम्परा लिखने वालों ने कहा है।
अर्थ-गुहा से निकले हुए महात्मा 'नन्दी' अशोक वन से आये हुए 'देव' पञ्चस्तूप्यों से 'सेन' शाल्मली वृक्षों के मूल में ध्यानाध्यय करने वाले 'वीर' तथा खण्ड केसर वृक्षों के मूलों में निवास करने वाले 'भद्र' कहलाये।
गुहायां वासितो ज्येष्ठो द्वितीयोऽशोकवाटिकात् । नियातौ 'नदि' 'देवा' भिधानावाद्यावनुक्रमात् ICE | पञ्चस्तूप्यास्तु 'सेना' नां वीराणां शाल्मलीद्रुमः । खण्डफेसरनामा च 'भद्र: 'सिंहो ऽस्य सम्मतः ॥१०० ।।
अभ्ययार्थ- (गुहायां वासितः ज्येष्ठः ) गुफाओं में रहने वाला प्रथम (अशोकवाटिकात्) अशोक वाटिका से निकला दूसरा (ये आद्यौ) आदि के दो (अनुक्रमात्) क्रमानुसार (नियातौ) निकले हुए ('नन्दि-देवा' भिधानात) 'नन्दि'
और 'देव' के नाम से पञ्चस्तूप्याः सेना पञ्चस्तूप वासी सेनों के नाम से (शाल्मलिद्रुमः) शाल्मलि वृक्षों से आये वीरों के नाम से (खण्डकेसरनामा) केसर वृक्षों की खोह से आये ‘भद्र' तथा 'सिंह' इस नाम से (अस्य-सम्मतः) इन पूज्य अर्हद् बलि आचार्य को मान्य थे।
अर्थ- गुफा में रहने वाले पहले अशोक वृक्षों के उद्यानों से आने वाले. द्वितीय ये आदि के दो क्रमशः 'नन्दि' तथा 'देव' नाम से अभिहित थे, पञ्चस्तूप्य वासी 'सेनों' के नाम से, शाल्मलि वृक्षों से आये 'वीर' नाम से, केसर वृक्षों की
श्रुतावतार