Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 39
________________ भाव) से नहीं - उन मुनियों में जो गुफा से आये थे उनमें किन्हीं को 'नन्दी' संज्ञा से अभिहित किया व किन्हीं को 'वीर' इस संज्ञा से युक्त किया । प्रथितादशोक वाटात्समागता ये मुनीश्वरास्तेषु । कांश्चिदपराजिताख्यान्कांश्चिद्देवाह्वयानकरोत् ॥६२॥ अन्वयार्थ - (ये मुनीश्वरा ) जो मुनिराज ( प्रथितादशोक वाटात्) प्रसिद्ध अशोक वृक्षों के उद्यान से ( समागताः ) आये हुए थे ( तेषु कांश्चित् अपराजिताख्यान् ) उनमें किन्हीं को 'अपराजित' इस नाम से ( कांश्चिद्देवाह्रयान्) किन्हीं को 'देव' इस नाम से ( अकरोत् ) किया । अर्थ- जो मुनिराज प्रसिद्ध अशोक वृक्षों के उद्यान से आये थे, उनमें से किन्हीं को 'अपराजित' नाम से किन्हीं को 'देव' इस नाम से अभिहित किया । पञ्चस्तूप्यनिवासादुपागता येsनगारिणस्तेषु । कांश्चित्सेनाभिख्यान्कांश्चिद्भद्राभिधानकरोत् ॥ ६३ ॥ अन्वयार्थ - (येऽनगारिणः ) जो अनगार साधु ( पञ्चस्तूप्य निवासाद् ) पञ्चस्तूपा निवास से (उपागता ) आये थे (कांश्चित् सेना भिख्यान् ) किन्हीं को 'सेन' इस नाम से तथा ( कांश्चित् भद्राभिख्यान् ) किन्हीं को 'भद्र' नाम से ( अकरोत् ) किया। अर्थ-जो गृह विरत साधु पञ्चस्तूप्य निवास से आये थे उनमें किन्हीं को 'सेन' नाम दिया तथा किन्हीं को 'भद्र' नाम दिया। ये शाल्मली महाद्रुममूलाद्यतयोऽभ्युपागतास्तेषु । कांश्चिद्गुणधर संज्ञान्कांश्चिद्गुप्ताह्वयानकरोत् ॥६४॥ अन्वयार्थ - (ये यत्तयः ) जो इन्द्रिय दमन करने वाले साधु (शाल्मलीमहाद्रुममूलात् ) शाल्मली नामक महा वृक्ष के मूल से (अभ्युपागताः ) आये थे (तेषु) उनमें (काश्चित् ) किन्हीं को (गुणधर संज्ञान ) 'गुणधर' संज्ञा से युक्त किया (कांश्चित् गुप्ताह्वयान् ) किन्हीं को 'गुप्त' इस नाम से अभिहित ( अकरोत् ) किया । अर्थ-जो इन्द्रिय दमन करने वाले साधु शाल्मली नामक महावृक्ष की शाखाओं में ध्यान करते थे वहाँ से आये साधुओं में किन्हीं को 'गुणधर' संज्ञा से युक्त किया तथा किन्हीं को 'गुप्त' संज्ञा से युक्त किया । श्रुतायतार ४५

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