Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 61
________________ ग्रन्थों -षट्खण्डागम व कसायपाहुइ को पूरी तरह जानकर बारह हजार गाथाओं प्रमाण : ड ...: है उसे छोड़मार प्राकृत संस्कृत तथा कन्नड़ तीनों भाषाओं में उत्कृष्ट 'पद्धति' नामक व्याख्या (वृत्ति सूत्रों के विषम पदों का विश्लेषण कर समझाने वाली व्याख्या 'पद्धति' कहलाती है वित्ति सुत्त विसमपदा भंजिए विवरणाए पटइ उपएसादो-जयधवल पु. पृष्ठ ५२) उनके कुछ काल निकट तुम्बलूरनामक सुन्दर ग्राम में होने वाले तुम्बुलूर नामक आचार्य थे उन्होंने भी दोनों सिद्धान्त ग्रन्थों (षट्खण्डागम व कषायपाहुड) का पखण्डागम के छठे खण्ड को छोड़कर चौरासी हजार गाथा प्रमाण रचना से युक्त कन्नड़ भाषा में चूड़ामणि नामक एक विशाल टीका की। तथा षट्रखण्डागम के षष्ठ महाबन्ध से प्रसिद्ध वर्गणा रखण्ड पर सात हजार गाथाओं प्रमाण पञ्जिका (पञ्जिका) नामक टीका लिखी। कालान्तरे ततः पुनरासन्ध्यां पलरि (पलित) तार्किकार्कोऽभूत् श्रीमान् समन्तभद्रस्वामीत्यथ सोऽप्यधीत्य तं द्विविधिम् । सिद्धान्तमतः षट्पण्डागमगतखण्डपञ्चकरयः पुनः ॥१६५ ।। अष्टौपत्यारिंशत्सहस्र सद्ग्रन्थरचनया युक्ताम् । विरचितयानतिसुन्दरमृदुसंस्कृतभाषया टीकाम् ॥१६६ ।। अन्वयार्थ- (कालान्तरे) कुछ समय के पश्चात (ततः पुनः) फिर (पलित तार्किकाऽर्कः) वृद्ध तार्किक सूर्य (श्रीमान् समन्तभद्र स्वामी इति) श्रीमान् समन्तभद्र स्वामी इस नामवाले हुए (सोऽपि) उन्होंने भी (आसंध्यां) अपनी जीवन की संध्या में - वृद्धावस्था में (तद्विविध) उन दोनों सिद्धान्तों को (अधीत्य) पढ़कर (षट्खण्डागमगतखण्डपञ्चकस्य) षटखण्डागम के पाँच खण्डों की (अष्टौचत्वारिंशत्सहस्त्रग्रन्थरचनया युक्ताम्) अड़तासील हजार गाथाओं प्रमाण रचना से युक्त (अतिसुन्दरमृदुसंस्कृतभाषया) अत्यन्त सुन्दर मृदु संस्कृत भाषा से युक्त (टीका विरचितवान्) टीका बनाई। अर्थ- इसके बाद कालान्तर में वृद्ध तार्किक सूर्य श्रीमान् समन्तभद्र स्वामी भी हुए उन्होंने भी दोनों सिद्धान्त ग्रन्थों को पढ़कर षट्खण्डागम के पाँच खण्डों पर अड़तालीस हजार गाथा प्रमाण अत्यन्त सुन्दर टीका लिखी जो अत्यन्त मृदु संस्कृत भाषा में थी। श्रुतावतार

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