Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 64
________________ तस्य समीपे सकलं सिद्धान्तमधीत्य वीरसेनगुरुः । उपरितमनिबन्धनाधिकारानष्ट च लिलेख ।।१७८ ।। अन्वयार्थ- (तस्य समीपे) चित्रकूटपुर में श्रीमान् एलाचार्य महाराज के पास (सकलं सिद्धान्त अधीत्य) सम्पूर्ण सिद्धान्त पढ़कर (वीरसेन गुरुः) वीरसेन गुरु (उपरितमनिबन्धनादि) ऊपर निबन्धन आदि (अष्ट अधिकारान्) अष्ट अधिकारों को (लिलेख) लिखा। -न चित्रकूट में निवास करने वाले श्रीमान् एलाचार्य के निकट सम्पूर्ण सिद्धान्तों को पढ़कर वीरसेन गुरु ने उपरितम निबन्धनादि आठ अधिकारों को लिखा। आगत्य चित्रकू टात्ततः स भगवान्गुरोरनुज्ञानात् । वाटग्रामे यात्राऽऽनतेन्द्रकृतजिनगृहे स्थित्वा ||१७६ ।। व्याख्याप्रज्ञप्तिमवाप्य पूर्य षट्खण्डतस्ततस्तस्मिन् । उपरितमबन्धनाद्यधिकारैरष्टादशविकल्पैः ॥१८० ।। सत्कर्मनामधेयं षष्ठं खण्ड विधाय संक्षिप्य । इति षण्णां खण्डानां ग्रन्थसहस्त्रै सिप्तत्या ॥१८१।। प्राकृतसंस्कृतभाषामिश्रां टीकां विलिख्य धवलाख्याम् । जयधयलां च कषायप्राभृतके चतसृणां विभक्तीनाम् ।।१५२॥ विंशतिसहस्रसद्ग्रन्थरचनया संयुतां विरच्य दियम् । यातस्ततः पुनस्तरिछष्यो जयसेनगुरूनामा ॥१८३ ।। तच्छेषं चत्वारिंशता सहसेः समापितवान् । जयधवलैयं षष्ठि सहस्रग्रन्थोऽभवट्टीका ॥१८४ ।। अन्वयार्थ- (ततः स भगवान्) तदनन्तर वह भगवान वीरसेन आचार्य (गुरुरनुज्ञानात) गुरु की आज्ञा से (चित्रकूटात् आगत्य) चित्रकूटपुर से आकर (वाटग्रामे) वाटग्राम में (अव) यहाँ (आनतेन्द्रकृतजिनगृहे) आनतेन्द्र द्वारा निर्मित जिनेन्द्र भगवान के मन्दिर में (स्थित्वा) रहकर (तस्मिन्) उसमें (व्याख्याप्रज्ञप्तिम् अवाप्य) व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक टीका को प्राप्त कर (पूर्वषट् खण्डतः) पूर्व षट्खण्ड से (उपरितमबन्धनादि अष्टादश विकल्पैः अधिकारैः) उपरितम बन्धनादि अठारह श्रुतावतार

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