Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 66
________________ लिये (व्याख्येयः) व्याख्यान करने योग्य (श्रुतावतारः) श्रुतावतार (श्रुतपञ्चम्यां) श्रुतपंचमी के दिन (निरूपितः) निरूपित किया गया। अर्थ- इस प्रकार श्री इन्द्रननन्दि मुनिराज ने भव्य जीवों को ऋषियों द्वारा व्याख्या करने योग्य यह श्रुतावार श्रुतपञ्चमी के दिन निरूपित किया। यत्किचिदत्र लिखितं समयविसद्धं मयाऽल्पबोधेन। अपनीय तदागमतत्त्वयेदिनः शोधयन्तूच्चैः // 186 / / अन्वयार्थ- (अल्पबोधेन मया) अल्पज्ञानवाले मेरे द्वारा (अत्र) इस श्रुतावतार नामक प्रतिज्ञापित ग्रन्थ में (यत्किंचित्) जो कुछ भी (समय विरुद्ध) शास्त्र विरुद्ध (लिखित) लिखा गया हो (आगमतत्त्ववेदिनः) जो आगम-तत्त्व को जानने वाले (तद्-अपनीय) उसे हटा करके (उच्चैः शोधयन्तु) अच्छी तरह अर्थ- ग्रन्थकार श्री इन्द्रनन्द्याचार्य अपनी लघुता प्रकट करते हुए कहते हैं कि इस प्रतिज्ञा किये हुए श्रुतावतार नामक ग्रन्थ में मेरे द्वारा जो भी आगम के विरुद्ध लिखा गया हो उसे दूरकर आगम तत्त्व को जानने वाले अच्छी तरह शोधन कर लें। श्लोकद्धयेन वृत्तेने के नाशीतिशतमितार्याभिः / सप्तोत्तरद्विशत्यां ग्रन्थेनायं परिसमाप्तः ||187 / / (श्लोकद्वयेन वृत्तेनैकैन चतुराशीतिशत मितार्याभिः / ससाशीति च शतेन ग्रन्थेनायं परिसमाप्ती / / ) नोट- उपरिलिखित गणना के अनुसार कोष्ठकगत गाथा होनी चाहिये। अन्वयार्थ -- (श्लो कद्वये न) दो श्लोक (एके न वृत्तेन) एक वृत्त (चतुरशीतिशत मिता आर्याभिः) एक सौ चौरासी आर्याछन्दों द्वारा इस तरह कुल 187 गाथा प्रमाण (अयं ग्रन्थः समाप्तः) यह ग्रन्थ समाप्त हुआ। अर्थ- दो श्लोक, एक शृंग्धरावृन एवं एक सौ चौरासी गाथाओं कुल एक सौ सत्तासी पदों में यह ग्रन्थ समाप्त हुआ। इति श्रीमदिन्द्रनन्धाचार्यकृतः श्रुतावतारः श्रुतावतार 72

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