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चन्दोवा, घण्टा आदि के द्वारा (श्रुतपञ्चम्या) श्रुतपञ्चमी के दिन (सिद्धान्तसुपुस्तकमहेज्याम्) सिद्धान्त महागम की पूजा (अकरोत्) की। ___अर्थ-उस पुष्पदन्ताचार्य ने भी भूतबलि आचार्य की भांति श्रुतपञ्चमी के ही दिन उस सिद्धान्त षट्खण्डागम की बड़े विधिविधान से अति उत्साहपूर्वक पूजा की। __ एवं षट्खण्डागमसूत्रोत्पत्ति प्ररूप्य पुनरधुना।
कथयामि कषायप्राभृतस्य सत्सूत्रसम्भूतिम् ॥१५६ ॥
अन्वयार्थ- (एवं) इस प्रकार (षट्खण्डागमसूत्रोत्पत्ति) षट्खण्डागम सूत्र की उत्पत्ति का (प्ररूप्य) प्ररूपण करके (पुनः अधुना) फिर इस समय (कषायप्राभृतस्य सत्सूत्र सम्भूति) कषायप्राभृत सत्सूत्र की उत्पत्ति को (कथयामि) कहता हूँ।
अर्थ- इस प्रकार षट्खण्डागम सूत्र की उत्पत्ति का प्ररूपण करके फिर इस समय कषायप्राभृत सूत्र की उत्पत्ति कहता हूँ- यह ग्रन्थकार इन्द्रनन्दी की प्रतिज्ञा है।
ज्ञानप्रवादसंज्ञकपञ्चमपूर्वस्थदशमवस्तुतृतीय । प्रायोदोषप्राभृतज्ञोऽभूद् गुणधरमुनीन्द्रः ।।१५०॥
अन्वयार्थ- (ज्ञानप्रवादसंज्ञक) ज्ञानप्रवादनामक (पञ्चमपूर्वस्थदशमवस्तु) पंचमपूर्व की दशम वस्तु के (तृतीय प्रायोदोस प्राभृतज्ञः) तृतीय प्रायोदोष/ पेज्यदोष प्राभृत को जानने वाले (गुणधर मुनीन्द्रः अभूत) गुणधर मुनीन्द्र हुए।
अर्थ- ज्ञानप्रवाद नामक पञ्चम पूर्व की दशम वस्तु के तृतीय प्रायोदोष (पेज्ज दोस) प्राभृत को जानने वाले गुणधर मुनीन्द्र हुए।
गुणधरधरसेनान्वयगुर्योः पूर्वापरक्र मोऽस्माभिः । न ज्ञायते तदन्ययकथकागममुनिजनाभायात् ॥१५१ ॥
अन्वयार्थ- (गुणधरधरसेनान्वयगुर्वोः पूर्वापर क्रमः) पेज्ज दोस प्राभृतकषायपाहुड़ के कर्ता तथा गुणधर पुष्पदन्त भूतबलि आचार्य के सिद्धान्त ज्ञान गुरु धरसेन के कुल गुरुओं दीक्षा गुरुओं का पूर्वापर क्रम (अस्माभिः) हम इन्द्रनन्दि आदि द्वारा (तदन्वय कथकागम मुनिजना भावात्) उनके गुरुवंश को कहने वाले आगम एवं मुनिजनों का अभाव होने से (न ज्ञायते) नहीं जाना जाता है।
श्रुतायतार