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अन्वयार्थ - ( तयोर्द्वयोरपि ) उन दोनों नागहस्ति एवं आर्यमक्षु के (पार्श्वे ) निकट में ( तानि सूत्राणि अधीत्य ) उन गाथा सूत्रों को पढ़कर ( यतिवृषभः) यतियों में श्रेष्ठ (यतिवृषभनामधेयः) यतिवृषभ नामक मुनि (शास्त्रार्थ निपुणमतिः) शास्त्रों के अर्थ में निपुणबुद्धि (बभूव) हो गये।
अर्थ - आचार्य गुणधर से उनके शिष्य नागहस्ति और आर्यमक्षु ने कसा पाहुड सुत्त का विशद व्याख्यान पूर्ण प्राप्त किया और इन दोनों के सान्निध्य में बैठकर यतियों में श्रेष्ठ यतिवृषभ नामक मुनि ने इस आगम शास्त्र के गाथा सूत्रों के अर्थ में निपुणता प्राप्त की ।
तेन ततो यतिपतिना तद्गाथावृत्तिसूत्ररूपेण । रचितानि षट्सहस्रग्रन्थान्यथ चूर्णिसूत्राणि ।। १५६ ।।
अन्वयार्थ - ( अथ ) इसके अनन्तर ( तेन यतिपतिना) उस यतिवृषभ नामक पति द्वारा (द्राहरण) उन गया की वृत्ति रूप सूत्रों द्वारा ( षट्सहस्रग्रन्थानि चूर्णिसूत्राणि) छह हजार श्लोक प्रमाण पर चूर्णि सूत्रों की ( रचितानि ) रचना की गई।
अर्थ - इसके अनन्तर उन यतिश्रेष्ठ यतिवृषभ द्वारा गाथाओं की वृत्ति के सूत्र रूप में छह हजार गाथा (श्लोक) प्रमाण सूत्रों को चर्णि सूत्रों के रूप में रचा
गया।
तस्यान्ते पुनरुच्चारणादिकाचार्य संज्ञकेन ततः । सूत्राणि तानि सम्यगधीत्य ग्रन्थार्थरूपेण ।। १५७ ।। द्वादशगुणित सहस्रग्रन्थान्युच्चारणाख्य सूत्राणि । रचितानि वृत्तिरूपेण तेन तच्चूर्णिसूत्राणाम् ।।१५८ ।। अन्वयार्थ - ( तस्यान्ते) उन यतिवृषभ आचार्य के निकट (पुनः) फिर ( उच्चारणादिक आचार्य संज्ञकेन) उच्चारण नामक आचार्य आदि द्वारा (ग्रन्थार्थरूपेण) ग्रन्थ | गाथा के अर्थ रूप में (तानि सूत्राणि) वे सूत्र ( सम्यक् अधीत्य) सम्यक् प्रकार पढ़कर ( द्वादशगुणितसहस्रग्रन्थानि ) द्वादश हजार गाथा वाले, ( उच्चारणाख्यसूत्राणि) उच्चारणनामक सूत्रों को ( तच्चूर्णि सूत्राणां ) उन यतिवृषभाचार्य के चूर्णि सूत्रों की (वृत्तिरूपेण) व्याख्यान रूप से ( रचितानि ) लिखे ।
अर्थ-उन यतिश्रेष्ठ यतिवृषभाचार्य के निकट उच्चारणाचार्य नामक मुनिराज ने गाथाओं के अर्थ रूप में उन सूत्रों (गाथाओं) को भले प्रकार पढ़कर
श्रुतावतार
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