Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 43
________________ अन्वयार्थ- (ततः) तदनन्तर (सुराष्ट्र देशे) सौराष्ट्र देश में, (गिरिनगर पुरान्तिकोर्जयन्तगिरौ) गिरिनगरपुर के निकट उय॑यन्त पर्वत पर (चन्द्रगुहा विनिवासी) चन्द्र गुहा में रहने वाले (महातपाः) महा तपस्वी (परममुनि मुख्यः) श्रेष्ठ मुनियों में मुख्य आचार्य (अग्रायणीय पूर्व स्थित पञ्चमवस्तुगत चतुर्थ महाकर्भ प्राभृतकतः) अग्रायणी नामक द्वितीय पूर्व स्थित पञ्चम वस्तु के अन्तर्गत चतुर्थ महाकर्म प्राभृत के ज्ञाता (सूरिः) आचार्य धरसेन नाम के (अभूत्) थे। अर्थ- तदनन्तर सौराष्ट्र देश में गिरिनगरपुर जिसको आज जूनागढ़ कहा जाता है उसके निकट उज्जयन्त पर्वत पर चन्द्र नामक गुफा में निवास करने वाले महातपस्वी, मुनियों में श्रेष्ठ तथा अग्रायणी नामक दूसरे पूर्व के पञ्चम वस्तु के अन्तर्गत चौथे महाकर्म प्राभृत के ज्ञाता धरसेन नामक श्रेष्ठ आचार्य थे। सोऽपि निजायुष्यान्तं विज्ञायास्माभिरलमधीतमिदम् । शास्त्रं व्युच्छेदमयाप्स्यतीति सञ्चिन्त्य निपुणमतिः ॥१०५ ॥ देशेन्द्रदेशनामनि वेणाक तटीपुरे महामहिमा । समुदितमुनीन् प्रति ब्रह्मचारिणा प्रापयल्लेखम् ॥१०६॥ अन्वयार्थ- (निपुणमतिः) निपुण बुद्धि वाले (महामहिमा) महान् महिमा वाले (सोऽपि) वह घरसेन मुनि (निजायुष्यान्तं) अपनी आयु के अन्त को जानकर (अस्माभिः) हमारे द्वारा (अलं अधीतं इदं शास्त्रं) पर्याप्त रूप से गंभीर रूप से अध्ययन किया गया यह शास्त्र (व्युच्छेद) व्युच्छित्ति को विनाश को (अवाप्स्यतीति) प्राप्त हो जायेगा ऐसा (विज्ञाय) जानकर (वेणाकतटी पुरे) वेणाक नाम वाली नदी के किनारे स्थित पुर में (इन्द्रदेश नामनि) इन्द्र देश नामक (देशे) देश में (समुदित मुनीन् प्रति) इकट्ठे हुए मुनियों के प्रति (ब्रह्मचारिणा) एक ब्रह्मचारी द्वारा (लेखम्) लेख पत्र (प्रापयत्) पहुंचाया। ____ अर्थ-निपुण बुद्धि से युक्त महा महिमाशाली, उन धरसेन महामुनि ने भी अपनी आयु का अन्तिम समय जानकर हमारे द्वारा गम्भीर रूप से अध्ययन किया गया यह शास्त्र कालान्तर में विच्छेद हो जाने वाला है ऐसा जान कर वेणाक नदी के किनारे स्थित पुर में, जो कि इन्द्र नामक देश में था- स्थित मुनि समुदाय के प्रति एक ब्रह्मचारी के द्वारा लेख (पत्र) पहुँचवाया। श्रुतावतार

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