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ये खण्ड के सरद्रुममूलान्मुनयः समागतास्तेषु । कांश्विसिंहाभिख्यान्कांश्चिश्चन्द्रायानकरोत् ॥१५॥
अन्वयार्थ- (खण्डकेसरद्रुममूलातू) दरार युक्त केसर वृक्ष के मूल से (ये मुनयः) जो मुनि (समागताः) आये थे (तेषु) उनमें (कांश्चित् सिंहाभिख्यान्) किन्हीं को 'सिंह' इस नाम से (कांश्चित् चन्द्राह्वयान) किन्हीं को ‘चन्द्र' इस नाम से (अकरोत्) किया।
अर्थ-जो मुनि खोह युक्त केसर वृक्ष के मूल से आये थे उनमें किन्हीं को । 'सिंह' इस नाम से किन्हीं को 'चन्द्र' इस नाम से युक्त किया।
आयातो नन्दिवीरौ प्रकटगिरिगुहायासतोऽशोकवाटा
देयाश्चान्योऽपरादिर्जित इति यतिपौ सेनभद्राहयौ च । पञ्चस्तूप्यात्सगुप्तौ गुणधरवृषभः शाल्मलीवृक्षमूला-- निर्यातौ सिंहचन्द्रौ प्रथितगुणगणौ केसरात्खण्डपूर्वात् ॥६६॥ उक्तञ्च- जैसा कि अन्यत्र भी कहा है
अन्ययार्थ- (प्रकटगिरिगुहावासतो) जो मुनि प्रकट रूप से पर्वत की गुहा के निवास से (आयातौ) आये थे (नन्दि वीरौ) वे 'नन्दि' और 'वीर' नाम से, (अशोक वाटान्) अशोक वृक्षों के उद्यान से (आयातौ) आये (देवाश्चान्योऽपरादिर्जित इति) 'देव' तथा 'अपराजित' इस नाम से, (पञ्चस्तूप्यात् समायातौ यतिपौ) पञ्चस्तूप्य से आये (यति सेनभद्राह्वयौ) 'सेन
और ‘भद्र' नाम से (शाल्मली वृक्षमूलात्) शाल्मली वृक्षों के मूल से (आयातौ) आये हुए (सगुप्तौ) गुप्त सहित (गुणधर वृषभ) गुणधर श्रेष्ठ (खण्ड पूर्वात् केसरात्) खण्ड केसर के मूल से (निर्यातौ) आये हुए (प्रथित गुणगणऔ) प्रसिद्ध गुण समूह से युक्त (सिंहचन्द्रौ) 'सिंह' एवं 'चन्द्र' नामों से युक्त हुए।
अर्थ-प्रकट रूप से जो मुनिगण गुफाओं के आवास से आये थे वे 'नन्दि' और 'वीर' जो अशोक वृक्षों के उद्यान से आये थे वे 'देव' एवं 'अपराजित' जो पञ्चस्तूप निवास से आये थे वे 'सेन' और 'भद्र' जो शाल्मली वृक्षों के मूल से
आये थे वे 'गुणधर' और 'गुप्त' तथा जो खण्ड केसर वृक्ष मूल से आये थे प्रसिद्ध गुणधारी 'सिंह' तथा 'चन्द्र' नाम वाले हुए |
श्रुतावतार