Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 18
________________ चौक्न सागर प्रमाण काल में पल्य का ३/४ भाग शेष रहने पर समाप्ति को प्राप्त हो गया। पल्यत्रिचतुर्भाग प्रमिते काले गते ततो जातः । श्रीवासुपूज्यभगवान सोऽप्याविष्कृत्य तन्मुक्तः ॥३०॥ अन्ययार्थ- (ततो) उसके बाद (पल्यत्रिचतुर्भागे प्रमिते काले गते) पल्य का ३/४ भाग बीतने पर (श्रीवासुपूज्यभगवान्) श्री वासुपूज्य भगवान् (जातः) हुए (सःअपि) वे भी (आविष्कृत्य) धर्मश्रुत को प्रकट करके (मुक्तः जातः) मुक्त हुए। __ अर्थ-ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के बाद पल्य का ३/४ भाग व्यतीत हो जाने पर बारहवें तीर्थंकर बासुपूज्य हुए 1 इन्होंने भी धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करके मोक्ष प्राप्त किया। एवं वसुपूज्यात्मजविमलजिनानन्तधर्मतीर्थेषु । त्रिंशत्नवकचतुष्कं त्रिपल्यपादोनितत्रिकैर्वाधीनाम्॥३१॥ प्रमितेषु पल्यपल्यत्रिपादपल्याईपल्यपल्यांशे । शेषे शेषं तत् श्रुतमनुक्रमादाप दिच्छदम् ॥३२॥ अन्वयार्थ- (एवं) इस प्रकार (वसुपूज्यात्मजविमल जिनानन्त धर्म तीर्थेषु) वसुपूज्यात्मज वासुपूज्य भगवान, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ के तीर्थों में (वार्थीनां) सागरों के क्रमशः (त्रिपल्यपादोनिमितित्रिकै) पल्य के तीन भाग बीत जाने से युक्त (त्रिंशत्, नवकं, चतुष्क) तीस, नव तथा चार (प्रमितेषु) प्रमाण होने पर (पल्य-पल्य त्रिपाद पल्यात् अर्ध पल्य पल्याशे) फल्य के तीन भाग प्रमाण व्यतीत हो जाने पर चतुर्थांश के लिये (शेष) शेष (तत् श्रुतम्) वह श्रुतरूप धर्म (अनुक्रमात्) क्रम से (विच्छेदं आदाप) विच्छेद को प्राप्त हो गया। __ अर्थ- भगवान वासुपूज्य जो कि नृपति वसुपूज्य के आत्मज थे के तीर्थ में तीस सागर समय व्यतीत होने पर पल्य के अन्तिम भाग में धर्म का विच्छेद हो गया। विमलनाथ भगवान के तीर्थ में नव सागर पौन पल्य समय व्यतीत होने पर पल्य के चौथे भाग तक के लिये धर्म का विच्छेद हो गया। श्रुतावतार २४

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