Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 22
________________ अर्थ- वह सिद्धार्थ पुत्र श्री वर्द्धमान कुमार तीस वर्षों तक कुमार काल व्यतीत कर (अविवाहित रहकर) दीक्षित हुए पश्चात् बारह वर्षों तक कठिन तपश्चरण करते हुए (३०+१२-४२) ब्यालीस वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान को प्राप्त हुए। उदिते केयलबोधे धनदः शक्राज्ञया चकार सभाम् । समयतिनामधेयां तस्य स्यादखिललोकगुरोः ॥४१॥ अन्वयार्थ- (केवल बोधे) केवलज्ञान के (उदिते) उदित होने पर (धनदः) कुबेर ने (शक्राज्ञया) इन्द्र की आज्ञा से (समवसृति नामधेया) समवशरण नाम की (सभा) सभा (तस्य अखिल लोक गुरोः) उन सम्पूर्ण लोक के गुरु की (चकार) बनायी। अर्थ-श्री वीरनाथ भगवान जो तीनों लोकों के गुरु थे, को केवलज्ञान प्रगट होने पर, इन्द्र की आज्ञा से, कुबेर ने समवशरण नाम की सभा का निर्माण किया | उस सभा में बिलकुल बराबरी से बैठने के लिये मुनियों, स्वर्ग की देवियों, आर्यिकाओं, ज्योतिषी देवाङ्गनाओं, भवनवासी देवियों, व्यन्तर देवियों, भवनवासी देवों, व्यन्तर देवों, ज्योतिषी देवों, कल्पवासी देवों, मनुष्यों और पशुओं को बैठने के वृत्ताकार रूप से बारह प्रकोष्ठ थे | चारों दिशाओं से आने के लिये चार प्रवेश द्वार थे। सुरनरमुनिवृन्दारकवृन्देष्वपि समुदितेषु तीर्थकृतः। षट्पष्टिरहानि न निर्जगाम दिव्यध्वनिस्तस्य ॥४२॥ अन्ययार्थ- (सुरनरमुनिवृन्दारकवृन्देषु) भवन, व्यंतर, ज्योतिषी देवों, मुनियों एवं कल्पवासी देबों के एवं अन्य श्रोता समूह के (समुदितेषु) इकट्ठे होने पर (अपि) भी (तस्य तीर्थकृत) उन कैवल्य प्राप्त तीर्थंकर भगवान की (दिव्यध्वनिः) दिव्यवाणी (निरक्षरी ओंकारमयी) (षट्षष्टिः) छियासठ (अहानि) दिन तक(न निर्जगाम) नहीं निकली (प्रकट नहीं हुई)। ____ अर्थ-देव, मनुष्य, मुनि आदि समस्त-भव्य उपदेशामृत पिपासुओं के उत्सुकतापूर्वक उस समवशरण सभा में उपस्थित रहने पर भी, उन तीर्थकर भगवान् महावीर की छियासठ दिन तक दिव्य ध्वनि नहीं खिरी । | श्रुतावतार

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