Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 35
________________ अर्थ-इस प्रकार नन्दि, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु तथा पूर्व श्लोक में कथित विष्णु सहित पाँच मुनि अनुक्रम से सम्पूर्ण श्रुत रूप सागर के पारगामी यहाँ इस भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड में हुए थे। एषां पञ्चानामपि काले वर्षशतसम्मितेऽतीते । दशपूर्वविदोऽभूवं तत् एकादश महात्मानः ॥७८ } अन्वयार्थ - (एषां पञ्चानाम् अपि) इन पाँचों श्रुत ज्ञानियों के (वर्षशतलम्मिते) सौ वर्ष का प्रमाण (काले) समय (अतीते) व्यतीत होने पर पूर्वविदो बसों के कान के मामी (पकाहा ग्यारह (महात्मानः) महान् आत्मा आत्मसाधक साधु (अभूवत्) हुए | अर्थ-इन पाँचों श्रुतज्ञानियों के सौ वर्ष प्रमाण समय व्यतीत होने पर दशपूर्व ज्ञानधारी ग्यारह महात्मा हुए। ये महात्मा ग्यारह अङ्ग और दशपूर्व धारी थे। अर्थात् इन्हें ग्यारह अंगों एवं दस पूर्व श्रुत का ज्ञान था । तेषामाद्यो नाम्ना विशाखदत्तस्ततः क्रमेणासन् । प्रोष्ठिलनामा क्षत्रियसंज्ञो जयनागसेनसिद्धार्थाः ॥७६ ॥ धृतिषेणविजयसेनौ च बुद्धिमान्गणधर्मनामानौ। एतेषां वर्षशतं त्र्यशीतियुतमजनि युगसंख्या ॥२०॥ अन्वयार्थ- (तेषां) उन ग्यारह महात्माओं में (आद्य) सबके आदि का (नाम्ना) नाम से (विशाखदत्तः आसीत्) विशाखदन थे (ततः क्रमेण) पश्चात् क्रम से (प्रोष्ठिलनामा) प्रोष्ठिल नामक, क्षत्रिय नामक, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजयसेन, बुद्धिमान, गा तथा धर्म नामक (आसन्) थे {एतेषां) इनकी (त्र्यशीतियुत) तेरासी सहित (वर्षशत) सौवर्ष (युग संख्या अजिन) समय संख्या थीं। अर्थ-उन दशपूर्वधारियों में सर्वप्रथम विशाखदत, द्वितीय प्रोष्ठिल फिर क्रमशः क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजयसेन, बुद्धिमान, गक तथा धर्म नामक थे। ये एक सौ तेरासी वर्ष के समय में हुए अर्थात् इनका सबका सम्मिलित समय एक सौ तेरासी वर्ष था। श्रुतावतार १

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