Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 33
________________ साढ़े तीन मास कम चार वर्ष शेष रह गये तब कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी में (रात्रि अन्तिम प्रहर में ) कमल वनों से वेष्टित पावापुर के बाहरी उद्यान में स्थित सरोवर से मुक्ति को प्राप्त हुए। भगवत्परिक्षण एव केवलं भूत ! गौतमनामा सोऽपि द्वादशभिर्वत्सरैर्मुक्तः ॥ ७२ ॥ अन्वयार्थ - (भगवत्परिनिर्वाणक्षण एवं ) भगवान् महावीर के निर्वाण के समय ही (गणभृत्) मुनिसंघ के नायक गौतम गणधर (केवलं) केवलज्ञान को (अवाप ) प्राप्त हुए (सोऽपि गौतमनामा) वह गौतम गणधर भी ( द्वादशभिः वत्सरै) बारह वर्षों में (मुक्तः) मुक्त हो गये। अर्थ- भगवान् वीरर्जिन के परिनिर्वाण के समय में ही गौतम गणधर केवल ज्ञान सम्पन्न हो गये तथा वे गौतम गणधर भी बारह वर्ष में मुक्त हो गये। निर्वाणक्षण एवासायापत्केवलं सुधर्म मुनिः । द्वादशवर्षाणि विहृत्य सोऽपि मुक्तिं परामाप ॥ ७३ ॥ अन्वयार्थ - (असौ ) वह ( सुधर्म मुनिः) सुधर्माचार्य ( निर्वाणक्षण एवं ) श्री इन्द्रभूर्ति गौतम गणधर के निर्वाण के क्षण में ही (केवलं) केवलज्ञान को (आपत्) प्राप्त हुए (सोऽपि ) वह सुधर्माचार्य भी ( द्वादश वर्षाणि) बारह वर्ष पर्यन्त ( विहृत्य ) विहार करके (घरां मुक्ति) उत्कृष्ट मुक्ति को (आप) प्राप्त हुए। अर्थ - उन सुधर्मा मुनि ने गौतम इन्द्रभूति गणधर के निर्वाण क्षण में ही केवलान को प्राप्त किया तथा लगातार बारह वर्षों के विहार में धर्मामृत की वर्षा कर उत्कृष्ट सिद्धि को प्राप्त हुए । अर्थात् समस्त कर्मों का क्षय कर मुक्ति को प्राप्त किया। जम्बूनामाऽपि ततस्तन्निर्वृतिसमय एवं कैवल्यम् । प्राप्याष्टत्रिंशतमिह समा विहृत्याप निर्वाणम् ॥७४ || अन्ययार्थ - (ततः) सुधर्माचार्य के मुक्त होने पर ( जम्बूनामाऽपि ) जम्बू स्वामी भी (तन्निर्वृतिसमय एवं ) उन सुधर्माचार्य के परिनिर्वाण के समय ही (कैवल्यं आप) केवल ज्ञान को प्राप्त कर ( इह ) इस भरत खण्ड के आर्य प्रदेश में (अष्टत्रिंशत) अड़तीस (समा) वर्षों तक ( विहृत्य ) विहार करके ( निर्वाणम्) निर्वाण को (आप) प्राप्त हुये । श्रुतावतार ३६

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