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अर्थ-श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन (वर्तमान में जो वीरशासन जयन्ती के रूप में महान पर्व माना जाता है) सूर्य का उदय होने पर रौद्र नामक मुहूर्त में चन्द्रमा के अभिजित नक्षत्र में होने पर तीनों लोकों के गुरु वर्द्धमान महावीर के धर्मतीर्थ की उत्पत्ति हुई अर्थात् समवशरण सभा में विपुलाचल पर्वत राजगृह में उनकी प्रथम देशना हुई।
तेनेन्द्रभूतिगणिना तदिव्यवघोऽवयुध्य तत्त्वेन ।
ग्रन्थोऽङ्गपूर्वनाम्ना प्रतिरचितो युगपदपराहे ॥६६ ।।
अन्वयार्थ- (तेन इन्द्रभूतिगणिना) उस इन्द्रभूति गणधर द्वारा (तत्त्वेन) तत्वतः (दद्दिव्यवचो। उन महावीर भगवान के दिव्य वचनों को (अन्नबुध्य) जानकर (युगपत) एक साथ (अपराह्न) दिन के अन्तिम भाग में (अङ्ग पूर्व नामा) अङ्ग व पूर्व नाम से (ग्रन्थः) ग्रन्थ (प्रतिरचितः) रचा। ___अर्थ-उन इन्द्रभूति गणधर ने भगवान महावीर की उस दिव्य वाणी को तन्वतः ज्ञात कर दिन के अपर भाग में अङ्ग पूर्व नामक आगमों की एक साथ रचना की।
प्रतिपादितं ततस्तत् श्रुतं समस्तं महात्मना तेन । प्रथितात्मीयसधर्मणे सुधर्माभिधानाय ।।६७ ।।
अन्ययार्थ- (तेन महात्मना) उन महात्मा गौतम गणधर ने (ततः) तदन्तर (तत् समस्तं श्रुतं) वह समस्त श्रुत, भगवान् वीरनाथ की दिव्यवाणी रूप (सुधर्माभिधानाय) सुधर्मा नाम के (प्रथितात्मीय सधर्मणे) प्रसिद्ध अपने सहधर्मा गणधर के लिए (प्रतिपादित) प्रतिपादित किया।
अर्थ-उन महात्मा गणधर प्रमुख गौतम इन्द्रभूति ने वह समस्त श्रुतज्ञान जो सन्मति महावीर वर्द्धमान की दिव्य वाणी से प्रसूत था वह अपने प्रसिद्ध सहधर्मी सुधर्माचार्य के लिए प्रतिपादित किया।
सोऽपि प्रतिपादितवान् जम्बूनाम्ने सधर्मणे स्वस्यै । तेभ्यस्ततो गणिभ्योऽन्यैरपि तदधीतं मुनिवृषभैः ॥१८॥
अन्वयार्थ- (सोऽपि) उन सुधर्माचार्य नेभी (स्वस्यै) अपने (जम्बूनाम्ने) जम्बू कुमार नाम वाले (स्वधर्मणे) अपने सहधर्मी के लिए (प्रतिपादितवान्) वह
श्रुतावतार