Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ काल आदि के भाव (भा) सन्मति भगवान् महावीर ने ( इन्द्र भूतये) इन्द्रभूति गणधर के लिये (दिव्यध्वनिना) दिव्यध्वनि से ( स्फुटम् ) स्पष्ट रीति से (अवोचत् ) कहा । अर्थ - जब वह इन्द्रभूति आचार्य भगवान् के प्रमुख गणधर बन गये तब कोई स्वतंत्र जीव तत्त्व है या नहीं? अगर है तो वह किन विशेष गुणोंवाला है? वह कितना ( किस आकार का) है? कैसा है ? इत्यादि छह प्रकार गणधर द्वारा प्रश्न करने के बाद जीव है और वह अनादि निधन ( शाश्वत ) सदाकाल से सदाकाल तक है। द्रव्यतः न कभी नया उत्पन्न होता है और न कभी पूर्णतः विनष्ट होता है वह अपने शुभ या अशुभ कर्मों का कर्ता है अपने ही शुभ या अशुभ कृत क्रमों का भोक्ता है, संसार में कर्मों के कारण जैसा उसे शरीर मिला उस शरीर प्रमाण ही वह उपसंहरण- विसर्पण अर्थात् संकोच विस्तार धर्म वाला है। ज्ञानदर्शन आदि गुणों से युक्त है। उत्पाद व्यय श्रीव्य वाला तथा स्वसंवेदन से ग्रहण करने योग्य है। वह अपने द्वारा उपार्जित कर्म सम्बन्ध से नोकर्म कर्म पुद्गलों को ग्रहण करने वाला, कर्म फल भोगने के बाद उन्हें छोड़ने वाला, भव भव में घूमने वाला तथा कर्मों के पूर्ण क्षय बन्धन मुक्त हुआ इस प्रकार अनेक भेदों से जीवादि वस्तुओं के सद्भाव को भगवान् सन्मति महावीर ने अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा स्पष्ट रीति से इन्द्रभूति गौतम गणधर के लिए कहा । - भगवान् की दिव्य ध्वनि के अनुसार आचार्य नेमिचन्द्र ने अपने द्रव्य संग्रह ग्रन्थ में लिखा है जीवो उपओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेह परिमाणो ! भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो विस्ससो गई । श्रावणबहुल प्रतिपद्युदितेऽर्के रौद्रनामनि मुहूर्ते । अभिजिद्गते शशांके तीर्थोत्पत्तिर्वभूव गुरोः ॥ ६५ ॥ अन्वयार्थ - (श्रावणबहुल प्रतिपदि ) श्रावण कृष्णा प्रतिपदा ( अर्के उदिते) सूर्य के उदित होने पर ( रौद्र नामनि मुहूर्त) रौद्र नाम के मुहूर्त में (शशांके अभिजिद्गते) चन्द्रमा के अभिजित् नक्षत्र पर पहुँचने पर (हुरोः ) लोक के गुरु या गौतम इन्द्रभूति के गुरु महावीर वर्द्धमान भगवान् के ( तीर्थोत्पत्तिः ) तीर्थ / धर्म की उत्पत्ति (बभूव ) हुई। श्रुतावतार ३६

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66