Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 25
________________ अर्थ- वह उस ब्राह्मण शाला का प्रमुख आचार्य इन्द्रभूति कहता है कि इस भारत खण्ड में सम्पूर्ण शास्त्र वेद-वेदान्न, उपनिषद्, पुराण, मीमांसा, दर्शन. व्याकरण, तर्क, कोष, इतिहासादि मुझे हाथ पर रखे हुए आँवले की भाँति स्पष्ट ज्ञात हैं. दूसरे शास्त्रार्थी विद्वानों की भी विद्वत्ता का अहंकार मैंने नष्ट कर दिया है। तत्केन हेतुना तद्व्याख्यानं नैव रोधते तुभ्यम् । कथयेति ततस्तस्मै प्रतिवचनमुवाच सोऽपीत्थम् ॥५०॥ अन्वयार्थ - (तत् केनं हेतुना ) तो किस कारण से ( तद् व्याख्यानं) वह मेरा उपदेश (तुभ्यं) तुम्हारे लिये (नैव) नहीं, बिलकुल नहीं ( रोचते) रुचता है ( कथय इति ) यह बताइए ( ततः) अनन्तर (सोऽपि ) वह छात्रवेष धारी इन्द्र भी ( तस्मै ) उस इन्द्रभूति गौतम आचार्य को (इत्थं ) इस प्रकार (प्रतिवचनं ) उत्तर रूप में ( उवाच ) बोला ! अर्थ- आगे आचार्य इन्द्रभूति गौतम कहते हैं कि जब मैं समस्त शास्त्रों का ज्ञाता तथा प्रवादियों के विद्यामद को गला (नष्टकर) देने वाला हूँ तो तुम्हें किस कारण से मेरा वह व्याख्यान ( कथन ) नहीं रुचता है- यह बतलाइये। तब छात्रवेषधारी वह इन्द्र इस प्रकार उत्तर देता है यदि सर्वशास्त्रतत्त्वं जानन्ति भवन्त एव तदमुष्याः । आर्यायाः कथयन्त्वर्थमिति पठति तत्काव्यम् ॥ ५१ ॥ अन्वयार्थ - (यदि ) अगर ( भवन्तः ) आप (सर्वशास्त्र तत्त्वं ) सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्व को (जानन्ति ) जानते हैं (तत्) तो ( अमुष्या) इस (आर्यायाः) इस आर्या छन्द में रचित पद्य का एक ही अर्थ ( कथयन्तु ) कहिये । (इति) इस प्रकार कहकर (तत्का) उस कविता रूप रचना को ( पठति ) वह ब्राह्मण छात्रवेशधारी इन्द्र पढ़ता है। अर्थ- अगर आप समस्त शास्त्रों के मर्म को जानते हैं तो इस आर्या (आर्या छन्द में रचित) पद का अर्थ बतलाइये ऐसा कहकर वह उस (आर्या छन्द में रचित) पद को पढ़ता है । षड्द्रव्यनयपदार्थत्रिकालपञ्चास्तिकायषट्कायान् । विदुषां वरः स एव हि यो जानाति प्रमाण नयैः ॥ ५२ ॥ श्रुतावतार ३१

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