Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 26
________________ अन्वयार्थ - (यः) जो ( प्रमाण नयैः) प्रमाण और नयों के द्वारा षड्द्रव्यनवपदार्थत्रिकालपञ्चास्तिकायषट्कायान् । ( षट कायान् ) छह द्रव्यों, नौ पदार्थों, तीन कालों, पाँच अस्तिकाय, छह काय के जीवों को (जानाति ) भले प्रकार जानता है ( स एव ) वही ( विदुषां वरः ) विद्वानों में (ज्ञानियों में ) श्रेष्ठ है । अर्थ- जो निकट भव्यजीव, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, कालइन छह द्रव्यों, नौ पदार्थों जीव, आश्रव, बँध, संवर निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप रूप नत्र पदार्थों, भूत-भविष्यत् और वर्तमान इन तीन कालों, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश रूप पाँच अस्तिकायों तथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नस्पति और स- इन छह कार्यों को नय-प्रमाण द्वारा भली प्रकार जानता है वही श्रेष्ठ विद्वान् अर्थात् सच्चा ज्ञानी या सम्यग्दृष्टि है । श्रुत्वा तेनेत्युदितामश्रुतपूर्वामतीव विषमार्थाम् । आर्यामिमां ततोऽस्याः सोऽर्थमजानन्निति तमूचे ॥ ५३ ॥ अन्वयार्थ - (तेन) उस ब्राह्मण विद्यार्थी का वेश धारण करने वाले इन्द्र द्वारा (इति) उपरिलिखित प्रकार से ( उदितां ) कही हुई ( अश्रुतपूर्वा) पहले कभी न सुनी हुई (अतीव विषमार्थाम् ) अत्यन्त विषम अर्थ बाली (इमां आर्या ) इस आर्या छन्द में विरचित पद को (श्रुत्वा ) सुनकर (ततः) अनन्तर (अस्याः ) इस आर्या पद के (अर्थ) अर्थ को (अजानन् ) नहीं जानता हुआ (तम्) उस छात्र वेशधारी से (सः) वह इन्द्रभूति आचार्य (इति) इस प्रकार (ऊचे ) कहने लगे। अर्थ-उस ब्राह्मण विद्यार्थी का वेश धारण करने वाले इन्द्र द्वारा कही हुई कभी पहले न सुनी हुई तथा विषम (कठिन) अर्थ से भरी उस आर्या को 'सुनकर. उसके अर्थ को नहीं जानता हुआ वह उससे इस प्रकार बोला | कस्यच्छात्रस्तावत्त्वं कथयेत्याह सोऽपि भट्टार्हत् । श्रीवर्धमानभट्टारकस्य जगतीगुरोश्छात्रः ॥५४॥ अन्वयार्थ - ( तावत् त्वं ) तो तुम (कस्य) किसके (छात्र) विद्यार्थी / शिष्य हो ( इति कथय ) ऐसा कहिये । (सः) वह (आह ) बोला ( भट्टार्हत् ) वह योग्य शिष्य (अपि) भी ( जगतीगुरो ) इस जगत भर के गुरु (श्री वर्द्धमान भट्टारकस्य ) पूज्य वर्द्धमान का ( छात्रः ) विद्यार्थी (अस्मि) हूँ । श्रुतावतार ३२

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