Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 24
________________ नासिका के अग्रभागों के (भन) विकार द्वारा/नथुने फुलाकर (मुहुः) बार-बार (अरुचिं) अरुचि को (प्रकटी कुर्वन्) प्रकट करते हुए (छात्रैः) छात्रों द्वारा (उपलक्षित) देख लिया गया। अर्थ-उस गौतम ग्राम की ब्राह्मण शाला में जाकर पाँच सौ छात्रों को व्याख्यान देने वाले तथा अपनी विद्वत्ता के मद से मदोन्मत्त सम्पूर्ण वेद-वेदाङ्गों के तत्त्व को समझने वाले गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति नामक ब्राह्मण को देखकर अल्पतम ग्रासों में भोजन लेने वाले छात्र के वेष में उस ब्राह्मण शाला के एक प्रान्त भाग में (कोने में) खड़े होकर उसका व्याख्यान (समझाने की विधि) को सुनकर तुमने उनसे सही अर्थ जाना इस प्रकार पूछने पर छात्रों से प्रतिपादन करने के समय नथुने फुलाकर बार-बार अरुचि प्रकट करते हुए छात्रों के द्वारा उसकी उपेक्षा वृत्ति जान ली गई। तेऽपि ततस्तच्येष्टितमीदृशमावेदयन् स्यकीयगुरोः । सोऽपि ततो द्विजमुख्यस्तभपूर्व छात्रमित्येवदत् ।।५८ || अन्वयार्थ- (तेऽपि) वे छात्र भी (ततः) तदन्तर (ईदृशं) इस प्रकार (तच्चेष्टितं) उसकी चेष्टा को (स्वकीय गुरोः) अपने गुरु को (आवेदयन्) निवेदन करने लगे। (सः) वह (द्विजमुख्यः) ब्राह्मणों में प्रमुख आचार्य भी (तम्) उस (अपूर्व) अनोखे नवीन (छात्र) छात्र को (इति) इस प्रकार (अवदत्) बोले। अर्थ-इसके पश्चात् उसकी ऐसी चेष्टा को देखकर छात्रों ने अपने गुरु से निवेदन किया । उन ब्राह्मण प्रमुख आचार्य ने भी उस नये-नये आये तथा आचार्य की व्याख्यान विधि की उपेक्षा करने वाले छात्र से इस प्रकार कहा शास्त्राणि करतलामलकायन्तेऽस्माकमिह समस्तानि । अपरेऽपि वादिनोऽस्माज्जायन्ते नष्टदुष्टमदाः ॥४६ ।। अन्वयार्थ - (इह) यहाँ- इस भरत खण्ड में (अस्माकं) मेरे लिये (समस्तानि) सम्पूर्ण (शास्त्राणि) शास्त्र-चारों वेद, छह वेदाङ्ग, सभी उपनिषद्, अठारहों पुराण, व्याकरण, तर्क, दर्शन, कोष, इतिहास, नीति शास्त्र आदि (करतलामलकायन्ते) हथेली पर रखे हुए आमलक/ आंवले की भाँति प्रत्यक्ष हैं। (अपरे) दूसरे (अन्यान्य वादिन) शास्त्रार्थी गण भी (अस्मात्) मुझसे (नष्टदुष्ट मदाः) नष्ट हो गया है- दुष्ट अहंकार जिनका- ऐसे हो गये हैं। श्रुतावतार ३०

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