Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 23
________________ दिग्वध्वनेरनिर्गमकारणमवगम्य गणधराभावम् । आनेतुमगात्तमतः सुत्रामा गौतमग्रामम् ॥४३ ।। अन्ययार्थ- (सुत्रामा) इन्द्र (गणधराभावम्) गणधर के अभाव को (दिव्यध्वनेरनिर्गमकारण) दिव्यध्वनि के नहीं खिस्ने का कारण (अवगम्य) जानकर (अतः) वहाँ से समवशरण सभा से (तम्) उस गणधर को (आनेतु) लाने के लिये (गौतम ग्रामम) गौतम नामक ग्राम को (अगात्) गया। अर्थ-इन्द्र ने गणधर के अभाव को ही भगवान् की वाणी नहीं खिरने का कारण जानकर इस समवशरण सभा से उस गणधर को लाने के लिये गौतम ग्राम गया। तत्र स गत्वा ब्राह्मणशालायामिन्द्रभूतिनामानम् । छात्रशतपञ्चकेभ्यो व्याख्यानं विदधतं विप्रम् ॥४४॥ गौतमगोनं विद्यामदगर्वितमखिलयेदवेदाङ्ग । प्रतिबुद्धतत्त्वमवलोक्य कलिकाछात्रवेषेण ॥४५॥ तद्व्याख्यानं श्रृण्वन्नेकोदेशे द्विजन्मशालायाः । स्थित्वा ततो भवद्भिः प्रतिषुद्धं तत्वमिति तस्य ।।१६।। छात्रेभ्यः प्रतिपादनसमयेऽसौ नासिकाग्रभङ्गेन। मुहुरत्यरुचिं प्रकटीकुर्वन्नुपलक्षितश्छात्रैः ।।४७ ।। अन्वयार्थ- (तत्र) उस गौतम ग्राम में, (गत्वा) जाकर (ब्राह्मण शालायां) एक ब्राह्मण शाला में (व्याख्यान) उपदेश को (विदधत) देने वाले (गौतम गोत्रं) गौतम इस गौत्र वाले तथा (विद्यामद गर्वित) विद्या के गर्व से गर्वित (अखिल वेद वेदान प्रतिबुद्ध तत्त्व) सम्पूर्ण वेद वेदाङ्गों के तत्व को जानने वाले (इन्द्रभूति) इंद्रभूति नाम के (विप्रं) ब्राह्मण को (अवलोक्य) देखकर (कवलिका छात्र वेषेण) लघुग्नास मात्र भोजी छात्र के वेष द्वारा (द्विजन्मशालायाः) उस ब्राह्मण शाला के (एकोद्देशे) एक प्रदेश में एक ओर (स्थित्वा) खड़े होकर (तद् व्याख्यानं) उस इन्द्रभूति आचार्य के व्याख्यान को (श्रृण्वन) सुनते हुए (तत्तः) उन आचार्य से आप लोगों द्वारा (तत्त्व) तत्त्व को (प्रतिबुद्ध) जाना इति ऐसा पूछने पर (छात्रेभ्यः) छात्रों से (प्रतिपादन समये) बताने के समय (असौ) उस इन्द्र ने (नासिकाग्र) श्रुतावतार २६

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