Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 20
________________ एक लाख अर्थात् चौवन लाख वर्ष व्यतीत होने पर (षडभिश्च शतसहस्र) छह लाख वर्ष व्यतीत होने पर (लक्षाभिपञ्चभि च) पाँच लाख वर्ष व्यतीत होने पर (त्र्यधिकाशीति सहनैर्युतार्धाष्टमशतैश्च त्र्यपञ्चाशत्) सात सौ पचास अधिक तेगसी हजार वर्ष व्यतीत होने पर तथा (सहित द्वितयेन) दो सौ वर्षों के क्रमशः (सम्मिते) व्यतीत होने पर (उदात्तार्थ) उदात्त अर्थवाला वह श्रुत (धर्म श्रुत) (चतुरमल-बोध-सम्पत-प्रगल्भं-मतियतिजनैः) चार निर्मल ज्ञानों की सम्पदा से प्रगल्भ (प्रकृष्ट) बुद्धि वाले यति जनों से (अविच्छिन्ने) अत्रुटित (क्वचिदपि) कहीं भी (अवच्छेद) भंगता को (न आदत्) प्राप्त नहीं हुआ। अर्थ-भगवान श्री शान्तिनाथ की धर्म परम्परा के आधा पल्य बीतने पर कुन्थुनाथ भगवान हुए। भगवान कुन्थुनाथ की धर्म परम्परा के एक हजार करोड़ वर्ष कम पल्य का चौथाई भाग व्यतीत होने पर अरहनाथ १८वें तीर्थकर हुए। अरहनाथ तीर्थकर की धर्म परम्परा के जब एक हजार करोड़ वर्ष व्यतीत हो गये तब मल्लिनाथ उन्नीसवें तीर्थंकर हुए | मल्लिनाथ भगवान की तीर्ध परम्परा के चौवन लाख वर्ष व्यतीत होने पर !! भगवान मुनिसुव्रतनाथ बीसवें तीर्थकर हुए। भगवान मुनिसुव्रतनाथ के धर्मतीर्थ के छह लाख वर्ष व्यतीत होने पर भगवान श्री नमिनाथ इक्कीसवें तीर्थंकर हुए | भगवान नमिनाथ के तीर्थ के पाँच लाख वर्ष व्यतीत होने पर भगवान नेमिनाथ हुए। नेमिनाथ के तीर्थ के तेरासी हजार सात सौ पचास वर्ष व्यतीत होने पर भगवान पार्श्वनाथ हुए। भगवान् पार्श्वनाथ के दो सौ पचास वर्ष व्यतीत होने पर भगवान् महावीर अन्तिम तीर्थंकर हुए। चार निर्मल ज्ञानों की सम्पदा से प्रकृष्ट बुद्धि वाले परम्परा से अविच्छिन्न यति जनों द्वारा वह उदात्त अर्थ वाला श्रुत कहीं भी विच्छेद को प्राप्त नहीं हुआ। अजिताधास्तीर्थकरा वृषभादिजिनेन्द्रतीर्थकालस्य । अन्तर्वायुष्का जाता इत्यत्र विज्ञयाः ।।३८॥ भुतावतार २६ ।

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