Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ अनन्त नाथ भगवान के तीर्थ में चार सागर के अन्तिम पल्य के आधे भाग में धर्म का विच्छेद हो गया। धर्मनाथ भगवान के बाद पौन पत्य कम तीन सागर व्ययीत हो जाने पर पल्य के चतुर्थांश तक को धर्म का विच्छेद हो गया। अथ धर्मतीर्थसन्तानान्तरकालस्य सत्यपर्यन्ते । उत्पद्य शान्तिनाथस्तत्प्रकटीकृत्य मुक्तिमगात् ॥३३॥ अन्वयार्थ- (अथ) इसके अनन्तर (धर्म तीर्थ सन्तानान्तर कालस्य) धर्मनाथ तीर्थकर की परम्परा के अनन्तर उस तीर्थ के पौन पल्य कम तीन सागर समय व्यतीत होने पर (शान्तिनाथ:) शान्तिनाथ भगवान (उत्पद्य) उत्पन्न होकर (तत्) उस धर्म श्रुत को (प्रकटीकृत्य) प्रकट करके (मुक्ति) मोक्ष को (अगात्) चले गये। अर्थ- इसके अनन्तर धर्मनाथ पन्द्रहवें तीर्थकर की धर्म परम्परा के समाप्न होने पर श्री शान्तिनाश्च सोलहवें तीर्थकर ने जन्म लेकर उस धर्म को प्रकट करके मुक्ति को प्राप्त किया। शान्त्यादिपार्श्वपश्चिमतीर्थकराणां य तीर्थसन्ताने । पल्यार्धवर्षकोटीसहस्रोनितपल्यपादाभ्याम् ॥३४॥ कोटि सहसेण चतुःपञ्चाशद् गुणितसहस्रेण । षड्भिश्च शतसहस्रैर्लक्षाभि पञ्चभिश्च तथा ।।३५ ।। त्र्यधिकाशीतिसहसैयुतार्धाष्टमशतैश्च पञ्चाशत् । सहितशतद्वितयेन च वर्षाणां सम्मिते क्रमशः ॥३६ ।। चतुरमलयोधसम्पत्प्रगल्भमतियतिजनैरविच्छिन्नैः । न क्वचिदप्यवच्छेदमापत्तत् श्रुतमुदात्तार्थम् ॥३७॥ अन्वयार्थ- (शान्त्यादि पार्श्व पश्चिम तीर्थकराणां) शान्तिनाथ हैं आदि में जिनके तथा पार्श्वनाथ के पश्चिम श्री वर्धमान तीर्थंकरों के (तीर्थ सन्ताने) तीर्थ परम्परा में (पल्यार्ध वर्ष कोटी सहस्रोनित पल्यपादाभ्याम) पल्य के आधा बीतने पर, एक हजार करोड़ वर्ष कम पल्य के चतुर्थांश बीतने पर, (कोटि सहस्रेण) एक हजार करोड़ बीतने पर (चतुः पञ्चाशत् गुणित शत सहस्रेण) चौवन गुणित श्रुतावतार २५

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66