Book Title: Shrutavatar Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 9
________________ अर्थ- अवसर्पिणी के चतुर्थ दुषमा-सुषमा काल की स्थिति ब्यालीस हजार वर्ष न्यून एक कोड़ा-कोड़ी सागर प्रमाण होती है। एकोत्तरविंशत्या वर्षसहौर्मिता समोपान्त्या । तावद्भिरेय कलिता वर्षसहसैः समा षष्ठी ।।६।। अन्वयार्थ- (उपान्त्या समा) उपान्त्य-अन्तिम से पहले की अवसर्पिणी अर्थात् अवसर्पिणी का पञ्चम काल (वर्ष सहस्रः) हजार वर्षों के (एकोत्तर विंशत्या) इक्कीस के (मिता) परिमित है। (तावद्भिरेव) उतने ही (वर्षसहस्रे) हजार वर्षों से (षष्ठी समा) अवसर्पिणी का षष्ठ काल भी (कलिता) बना हुआ है- अर्थात् पष्ठ काल भी उतने ही वर्षों से बना है। अर्थ- अन्तिम से पहला उपान्त्य कहलाता है। षष्ठ दुषमा-दुषमा काल अवसर्पिणी का अन्तिम काल है उससे पहले का पाँचवाँ दुपमा काल इक्कीस हजार वर्ष प्रमाण है तथा छठा दुषमा-दुषमा काल भी इक्कीस हजार वर्ष का है। धनुषां षट्चत्वारि द्वे च सहसे शतानि पञ्चैव । हस्ताः सप्तारलिः षटकालिकमानतोत्सेधः ।।१०।। अन्वयार्थ-- (धनुषां) धनुषों के (षट् चत्वारि च द्रे सहस्रे) छह, चार तथा दो हजार (च पञ्चच शतानि) तथा पांच सौ (सप्त हस्ता) सात हाथ (अरनि) प्रायः एक हाथ (षट्कालिक मानता) छह कालों का, मानता-प्रमाण (उत्सेध) ऊँचाई है। अर्थ- सुषमा- सुषमादि छह कालों के प्रारम्भ में क्रमशः छह हजार धनुष, चार हजार धनुष, दो हजार धनुष, पाँच सौ धनुष, सात हाथ एवं अरलि (प्रायः एक हाथ) शरीर की ऊँचाई का प्रमाण है। १- सुषमा-सुषमा काल के प्राराम्भ में छह हजार धनुष प्रमाण मनुष्य शरीर की ऊँचाई होती है। (तीन कोश प्रमाण) २. सुपमा नामक अवसर्पिणी के दूसरे काल के प्रारम्भ में चार हजार धनुष प्रमाण की ऊँचाई होती है। अर्थात् दो कोश। ३- सुषमा-दुषमा नामक तीसरे अवसर्पिणी काल में दो हजार धनुष अर्थात् एक कोश प्रमाण शरीर की ऊंचाई होती है। श्रुतावतारPage Navigation
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