Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 10
________________ ४- दुषमा-सुषमा नामक पाँचवें काल में पाँच सौ धनुष प्रमाण शारीर की ऊँचाई होती है। ५ - दुषमा नामक पञ्चम काल के प्रारम्भ में सात हाथ प्रमाण शरीर की ऊँचाई होती है। ६. अति दुषमा काल के प्रारम्भ में एक अरनि प्रमाण अर्थात् एक हाथ शरीर की ऊंचाई होती है। पल्यानि त्रीणि ट्रे तथै ककं वर्षपूर्वकोटी च विंशच्छतं च विंशतिरब्दानां तन्नृणामायुः ॥११॥ अन्ययार्थ-(तन्नृणा) उन अवसर्पिणी के छह कालों के लोगों की (आयु) शरीर स्थिति (त्रीणि पल्यानि) तीन पल्य (द्वे) दो पल्य (तथा एकक) तथा एक पल्य एवं (वर्ष पूर्व कोटि) एक पूर्व कोटि वर्ष (च) और (अब्दानां) वर्षों के (विंशच्छतं) एक सौ बीस वर्ष (विंशति) और बीस वर्ष होती है। ____ अर्थ- अवसर्पिणी के उन छह कालों के मनुष्यों की आयु क्रमशः सुषमासुषमा काल के मनुष्यों की तीन पल्य, सुषमा काल के मनुष्यों की दो पल्य, सुषमा-दुषमा नामक तीसरे काल के मनुष्यों की आयु एक पल्य दुषमा-सुषमा नाम के चतुर्थ काल के मनुष्यों की आयु एक कोटि पूर्व वर्ष, दुषमा नामक पञ्चम काल के मनुष्यों की आयु एक सौ बीस वर्ष तथा अति दुषमा नामक छठे काल के मनुष्यों की आयु मात्र बीस वर्ष होती है। तत्राद्ययोर्व्यतीते समये सम्पूर्ण योस्तृतीयायाः । पल्योपमाष्टमांशन्यूनायाः कुलधरा ये स्युः ॥१२॥ अन्वयार्थ-(तत्र) उस अवसर्पिणी काल में (सम्पूर्णयोः) पूरे (आद्ययोः) आदि के दो (सुषमा-सुषमा व सुषमा) कालों के (व्यतीते) निकल जाने पर (तृतीयायाः) तीसरे के (पल्योपमाष्टमांशन्यूनाया) पल्य के अष्टमांशभागकम (समये) समय पर जाने पर (ये) जो (कुलधराः) कुलकर (स्युः) हुए। अर्थ- उस अवसर्पिणी काल में आदि (प्रारम्भ) के दो कालों के पूर्ण व्यतीत हो जाने पर और तृतीय काल में पल्य के अष्टम अंश भाग-प्रमाण समय रह जाने पर जो कुलकर हुए वे इस प्रकार हैं झुतायतार

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