Book Title: Shrutavatar
Author(s): Indranandi Acharya, Vijaykumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 11
________________ तेषामाद्यो नाम्ना प्रतिश्रुतिः सन्मतिद्धितीयः स्यात् । क्षेमकरस्तृतीयः क्षेमन्धरसज्ञितस्तुर्यः ॥१३॥ सीमङ्गुरस्तथाऽन्यः सीमन्धरसाङ्कयो विमलवाहः । चक्षुष्माँश्च यशस्यानभिचन्द्रश्चन्द्राभनामा च ॥१४॥ मरुदेवनामधेयः प्रसेनजिन्नाभिराजनामाऽन्त्यः । हामाधिक्काराननुशासति निजतेजसः स्खलितान् ।।१५।। अन्वयार्थ- (तेषां) उन कुलकरों का (आध) प्रथम (नाम्ना) नाम से (प्रतिश्रुति) प्रतिश्रुति (द्वितीयः) दूसरा (सन्मतिः स्यात्) दूसरा सन्मति है (तृतीयः) तीसरा (क्षेपङ्करः) क्षेभंकर (तुर्यः) चतुर्थ (क्षेमन्धर संज्ञिनः) क्षेमन्धर नाम वाला (तथाऽन्यः) इसके पश्चात् (अन्यः) दूसरा सीमकर (सीमन्घर साह्रयो विमलवाहः) सीमन्धर नाम सहित विमलवाह च (चक्षुष्माश्च यशस्वानभिचन्द्राभनामा च) चक्षुष्मान् यशस्वान अभिचन्द्र तथा चन्द्राभ नाम वाला (मरुदेव नामधेयः) परुदेव नामक (प्रसेनजित्राभिराजनामान्त्यः) प्रसेनजित् तथा अन्तिम नाभिराज (निजतेजसः) अपनी तेजस्विता से (स्खलितान्) मर्यादाओं से च्युत होने वाले लोगों को (हामाधिक्कारात्) हा! हाय । मां! मतकरो। (धिकारात्) स्वांधिक तुम्हें धिक्कार है इस वचन से (अनुशासति) अनुशासित करते थे। अर्थ- वे कुलकर में थे- (१) प्रतिश्रुति (२) सन्मति (३) क्षेमंकर (४) क्षेमन्धर (५) सीमकर (६) सीमन्धर (७) विमलवाह (न) (E) चक्षुष्मान (६) यशस्वान (१०) अभिचन्द्र (११) चन्द्राभ (१२) मरुदेव (१३) प्रसेनजित् एवं (१४) नाभिराज। ये सब अपनी तेजस्विता से, मर्यादाओं को भंग करने वालों को हा! मा!! तथा धिक्!!! - इन तीन बचन दण्डों से ही अनुशासित करते थे। हाकारं पश्ा ततो हामाकारं च पहा पशान्ये । हामाधिक्कारान्कथयन्ति तनोर्दण्डनं भरतः ॥१६॥ अन्वयार्थ (हाकारं पञ्च) हा! शब्द को पाँच पहले के कुल-कर (हामाकार च अन्ये पञ्च) हा! तथा मा मत करो शब्द को दूसरे पाँच तथा (अन्ये) (हामाधिक्कारान) हा, मत करो तथा धिक्कार-इन शब्दों को बचे हुए अन्य कुलकर [ श्रुतावतार __ १७

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