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अर्थ- चौदह कुलकरों ने भोगभूमि की समाप्ति और कर्म भूमि के प्रारम्भ में होने वाले परिवर्तनों से अनभिज्ञ होने से भयभीत मनुष्यों को निम्न प्रकार बताकर उनका भय निवारण कर उन्हें सुव्यस्थित किया -
१- प्रतिश्रुति कुलकर ने सूर्य चन्द्रमा के उदय अस्त आदि के विषय में बताया।
२- सम्मति कुलकर ने सूर्य, चन्द्रमा तारों का गमन आदि बताया।
३- क्षेमङ्कर कुलकर ने उस समय पशुओं में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हेने वाली सामादि को बहाना मले जाने का उपाय बताया।
४- क्षेमन्धर कुलकर ने उन क्रूर पशुओं को मानव समाज से अलग कर उनकी रक्षा की।
५- सीमंकर कुलकर ने कल्पवृक्षों के कम होने पर होने वाले संघर्ष से || बचने के लिये इतने वृक्षों का उपयोग ये करें आदि सीमा कर दी।
६- सीमन्धर कुलकर ने एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन न करें यह बताया।
७- विमलबाह (न) ने हाथी घोड़ा आदि पशुओं पर सवारी करना सिनाया।
८- चक्षुष्मान कुलकर ने सन्तान को देखकर डरने से छुड़ाया । १.- यशस्वान ने-पुत्र मुख देखकर प्रसन्न होने का उपदेश दिया।
१०- अभिचन्द्र ने-चालकों की क्रीड़ा देखकर उससे प्रसन्न होना सिखाया, सन्तान को नाम लेकर बुलाना आदि सिखाया ।
११- चन्द्राभ ने- सन्तान के जीवित रहने पर उसके साथ रहकर पारिवारिक जीवन सिखाया।
१२- मरुदेव ने- आजीविका का चिन्तन, नौका आदि द्वारा जल तिरने की विद्या सिखाई। आरोहण-सोपान लगाकर चढ़ने की विद्या सिखाई।
१३- प्रसेनजित् ने- जन्म लेते शिशुओं के शरीर पर होने वाले जेर रूपी मल के शोधन की बात बताई। तथा शत्रुओं से जीतना सिखाया।
१४ - नाभिराज कुलकर (तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता) ने शिशुओं की नाभि
। श्रुतायतार
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