Book Title: Shravak Bhoomi Part 02
Author(s): Karunesha Shukla
Publisher: Kashi Prasad Jayaswal Research Institute

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Page 50
________________ The Previous Buddhist Thinking and the works of Asanga cxxxix represents the make-up of the human individuality in its various phases. 1. In the Abhidharmika texts these twelve links were analysed and elucidated in the light of the previous thinking and later developments and connected with the past, present and the future time passages. It was also conceived as kşanika, momentary. 1. 2. 3. 3 For an elucidation of the nature of these bhavāngas, vide VSm. XVIII. 43-63; Abtdhammatthavibhāvanitikā ad Abhas. VIII. 4 sq.; p. 211, (Varanasi Ed.) Ada, p. 70-73; for an exposition of the twelve añgas of Pratityasamutpada, see, Vasubandhu's AK. III. 18 sq. : नात्मास्ति स्कन्धमात्रन्तु क्लेशकर्माभिसंस्कृतम् । अन्तराभवसन्तत्या कुक्षिमेति प्रदीपवत् ॥ 18 ॥ यथाक्षेप क्रमाद्वृद्धः सन्तानः क्लेशकर्मभिः । परलोकं पुनर्यातीत्यनादिभवचक्रकम् ॥ 19 ॥ स प्रतीत्यसमुत्पादो द्वादशाङ्गस्त्रिकाण्डकः । पूर्वापरान्तयोद्वे द्वे मध्येऽष्टौ परिपूरिणः ॥ 20 ॥ पूर्वक्लेशदशाऽविद्या संस्काराः पूर्वकर्मणः । सन्धिस्कन्धास्तु विज्ञानं नामरूपमतः परम् ॥ 21 ॥ प्राक्षडायतनोत्पादात् तत्पूर्वं त्रिकसंगमात् स्पर्शः प्राक् सुखदुःखादिकारणज्ञानशक्तितः ॥ 22 ॥ वित्तिः प्राङ्मैथुनात् तृष्णा भोगमैथुनरागिणः । उपादानं तु भोगानां प्राप्तये परिधावतः ॥ 23 ॥ स भविष्यत् भवफलं कुरुते कर्म तद्भवः । प्रतिसन्धिः पुनर्जातिर्जरामरणमा विदः ॥ 24 आवस्थिकः किलेष्टोऽयं प्राधान्यात्त्वङ्गकीर्तनम् । पूर्वापरान्तमध्येषु संमोहविनिवृत्तये ॥ 25 ॥ क्लेशस्त्रीणि द्वयं कर्म सप्तवस्तु फलं तथा । फलहेत्वभिसङ्क्षेपो द्वयोर्मध्यानुमानतः ॥ 25 ॥ क्लेशात् क्लेशः क्रिया चैव ततो वस्तु ततः पुनः । वस्तु क्लेशाश्च जायन्ते भवाङ्गानामयं नयः ॥ 27 ॥ हेतुरत्र समुत्पादः समुत्पन्नं फलं मतम् ॥ 28 | Uide also, AKB, pp. 129-142. Cp. AKB, III. 24, p. 133.

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