________________
( २२ )
समय परिवर्तन के साथ २ संसार की परिस्थिति सदा बदलती रहती है। जो जाति, धर्म वा सम्प्रदाय अपने को समय के अनुकूल बना लेता है वही अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है । जिस में समयानुकूल परिवर्तित होने की शक्ति नहीं है उसका मिट जाना स्वाभाविक है । किन्तु कितने आश्चर्य की बात है कि श्राब के वैज्ञानिक और विकासवाद के युग में भी कितने पठित व्यक्ति भी पुरानी अन्धपरम्परा के रोग से मुक्त नहीं हो पाए हैं । अस्तु, मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि अन्य धर्मों की तरह जैन धर्म में भी स्त्री को पुरुष के समान ही ज्ञान की अधिकारिणी माना है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय की अनेक साध्वयें इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
जैन धर्म के सिद्धान्त बड़े विशाल और महत्वपूर्ण है। जैन धर्म मनुष्य मात्र को चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो मंत्र का अधिकारी मानता है । जैन धर्म को विशालता देखने के लिये श्री हेमचन्द्राचार्य का अधोलिखित लोक ध्यान देने योग्य है । बत्र श्राचार्य जी वैदिक मत के देवता भगवान् सोमनाथ के मन्दिर के तानने श्राए तो उन्हों ने कहा
-
नमस्तस्मै ॥
भत्र बोजांकुर जननाः रागाद्या क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णु हरो जिनो वा अर्थात् संसार में उत्पत्ति के मूल कारण रागादि जिसके नष्ट हो गए है ऐसा देवता चाहे उसका नाम ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो या जिन हो उसको मैं नमस्कार करता हूं । इतनी विशालता रखने वाला जैन धर्म स्त्री को मुक्ति की अधिकारिणी न मानता यह संभव नहीं । अतः उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि स्त्री को मुक्ति की अधिकारिणो न मानने वाला दिगम्बर मत बाद का है और श्वेताम्बर जैन उस से प्राचीन है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com