Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 192
________________ ( १७३. ) ईश्वर का संसार से सम्बन्ध । अब प्रश्न यह है कि जैन सिद्धान्त के अनुसार जब ईश्वर न तो ससार का कर्ता है और न जीवों के कर्मफल भुगताने वाला नियन्ता है तो फिर उस का संसार से संबन्ध ही क्या रहा ! जब वह संसार के कामों में और उम की व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और नहीं किसी को हानि या लाभ ही पहुंचा सकता है तो फिर ऐसे ईश्वर को मानने से, उस की पूजा और उपासना करने से संसार को क्या लाभ ? उस ईश्वर की सर्वज्ञता और अनन्त शक्तिमत्ता से ससार को क्या फायदा ? बैनी लोग जो मन्दिरों में जाकर भगवान् की प्रार्थना करते है; धूप, दीप और चन्दन आदिसे भगवान् का अर्चन करते हैं; स्थानकों और उपासरों में जाकर उस का ध्यान, चितन और कीर्तन करते हैं, यह सब करने से फिर क्या लाभ होता है ? १. इस का उत्तर जैन 'सद्धान्त इस प्रकार देते हैं । प्रतिदिन के जीवन के अनुभव में हम देखते हैं कि जब हम किसी दुष्ट पुरुष को देख लेते हैं या उस का. चिन्तन हो पाता है तो हृदय में बुरे भाव उत्तन्न होने लगते हैं और दुष्ट की दुष्टता पर क्रोध श्राजाता है। इसी प्रकार जब कभी किसी महात्मा या महापुरुष के हम दर्शन करते हैं या उस का चिन्तन करते हैं तो चित्त में बड़ी प्रसन्नता और शान्ति उपवती, है.। .पवित्र विचार उपजते हैं और सस्कार -शुद्ध होते हैं। विश्व भर में बड़े २ महापुरुषों, वीरों, विद्वानों और नेताओं के बा बुतः बनाकर यत्र तत्र चौरस्तों और पाकों में रखे गए हैं, और जन्म- . दिवस.महोत्सवों पर उन बुतों के गले में जो फूल मालाएं डालो, जाती है उसका मतलब.भी यही होता है कि लोंग उनको देखकर वैसे महापुरुष, वीर, महात्मा या विद्वान् बनने का प्रयत्न करें। इसी प्रकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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