Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 205
________________ ( १८६) जातियों को अपनी उस लपेट में ले लेते हैं और कच्चे मालकी खोज में पृथ्वी को रौंद डालते हैं । पक्का माल बेचने के लिये सब प्रकार के दाँव-पेच, छल प्रपञ्च काम में लाते हैं। यहां तक कि युद्ध के शैव नरक से भी नहीं डरते। अब पाइये सस्कृति की ओर, जिस पर मानव की मानवता पूर्णरूप से निर्भर है । सस्कृति है आत्मा की वस्तु, अात्मिक उत्थान का चिन्ह, श्रात्मिक उत्कर्ष की सीढ़ी और आत्मदर्शन का मार्ग । सभ्यता है अपरा विद्या और संस्कृति है परा विद्या। यदि हमें इन दो शब्दों का लदण अंग्रेजी भाषा में दो टूक करना पड़े तो हम उसे इस प्रकार करेंगे(Civilization is an expression of flesh, while culture is toe manifestation of soul. अर्थात्:- सभ्यता शरीर के मनोविकारों की द्योतक है, जब कि संस्कृति आत्मा के अभ्युत्थान की प्रदर्शिका है। सभ्यता का उत्थान मानव को प्रकृतिवाद की ओर ले जाता है, जब कि संस्कृति मानव को अन्तमुखी करके उस के सात्विक गुणों को प्रकट करती है।" श्रमण संस्कृति की विशेषताएं। श्रमण संस्कृति प्राणीमात्र के प्रति समता रखने का उपदेश देती है । विश्व के सब जीवों के प्रति दया रखना और उनका कल्याण चाहना भमण संस्कृति का प्रधान उद्देश्य है। इसकी दया की सीमा केवल जंगम संसार के प्राणियों के लिये ही सीमित नहीं अपितु स्थावर संसार के जीवों के लिये भी प्रसारित है। अपने मुख दुःख के समान ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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