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रखना, उन के लिये अपने व्यक्तिगत जीवन के स्वार्थ, सुखोपभोग की लालसा ; यश और प्रतिष्टा की चाह का परित्याग करना , दूसरे के विनाश में अपना निर्माण देखने की लिप्सा समाप्त करना, घृणा, विद्वेष, अमहिष्णुता और मतान्धता को अपने जीवन में न आने देना तथा सामाजिक जीवन में भी उसे न फैलने देना; इन्द्रियों को संयम में कसकर अन्तः करण को पवित्रता की ओर बढ़ना. सत्वशुद्धि के लिये हो उपयुक्त जीवन-प्रणालीका निर्माण करना और द्वन्दों से ऊपर उठते हुए निष्काम भाव से कर्म करने की क्षमता प्राप्त करना यही भारतीय संस्कृति है । मनुष्य की पशुता मिटा कर उसे मानव बनाना और फिर ईश्वरत्वकी अो। उसे पुरस्सर काना भारतीय संस्कृतिका कार्य है ।"
इस प्रकार आकात्तिक, राजनैतिक और सामाजिक अादि सभी जोवन के क्षेत्रों से अनाग पंस्कृति विश्व को अन्य मस्कृतियों में बहुत ऊँचा स्थान रखती है। पांच महावतों के संक्षिप्त विवर्ण से ही पाठक भनी भाँति समझ गए होंगे कि श्रमण संस्कृति में मानव जीवन को अधो. गतिकी अोर लेजाने वाले हिंसा, असत्य, अनधिकार चेष्टा, असंयम
और तृष्णा का कितना विरोध किया गया है। संसार में व्यापक रूपसे फैली हुई विषमता, स्पर्धा, कलह और अशा न्स को मिटाने के लिये भ्रमण संस्कृति ने विश्वके सामने अहिसा, सत्य, समानत , संयम और याग के ग्रादर्शों को रक्खा है। इन आदर्शों पर चलने से ही विश्व में शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है और मानव जाति आत्म कल्याण की ओर बढ़ सकती है ।
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